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पश्चिमी भारत की यात्रा स्वीकार किया था तब उसके अधिकारों की सीमा और अपनी भावी मान्यताओं एवं सुविधाओं की भी कोई परिभाषा निश्चित की गई थी या नहीं; परन्तु, एक प्रतिज्ञा अवश्य हुई थी और वह उनके विशेषाधिकारों के संरक्षण के लिए थी कि सामन्त जाति को प्रभावित करने वाले किसी आन्दोलन या परिवर्तन से सम्बद्ध कोई भी निर्णय एकत्रित भायाद की सलाह के बिना नहीं लिया जायगा। 'भायाद' या 'भाइयों की पंक्ति अथवा श्रेणी' यह कच्छ के जागीरदारों का प्रभावशाली विशेषण है। यह 'राज्य-सभा' अब भी चलती है और इसमें प्रत्येक प्रमुख जागीरदार भाग लेता है।
सब जाड़ेचा सामन्तों को एक साथ बुलाने का, जिसको 'खेर' कहते हैं, अधिकार राव को प्राप्त है; परन्तु, सर्वोच्च सत्ता के प्राज्ञापालन की इस धारा में भी उनकी स्वतंत्रता का एक चिह्न मौजूद है-वह यह कि इस उपस्थिति के बदले में राजा से कुछ आर्थिक भेट ली जाती है, जो यद्यपि इतनी साधारण होती है कि उन लोगों को बुलाने का अधिकार प्रबल है अथवा आज्ञा की अव. मानना करने की शक्ति-इसका निर्णय करने में सन्देह ही बना रहता है ।
इस भत्ते (भेट) की लघु राशि से, अर्थात् एक कौड़ी प्रति घुड़सवार और एक कौड़ी प्रति दो-पैदल से, यह ज्ञात होता है कि इस विषय में कोई आपसी समझौता है क्योंकि इसे स्वीकार करने में सरदार को तो यह अनुभव होता है कि यह सेवा अनिवार्य नहीं है (यद्यपि इस तुच्छ रकम से राशन (बूतायत) भी नहीं खरीदा जा सकता) साथ ही, यह कर इतना हल्का है कि राजा व प्रजा दोनों ही पर इससे कोई अधिक बोझा नहीं पड़ता।
किसी जाड़ेचा सरदार की मृत्यु पर राव के द्वारा मृतक के उत्तराधिकारी के लिए एक तलवार और पगड़ी भेजी जाती है, परन्तु इसके द्वारा वह उत्तराधिकार पर न कोई अधिकार प्रयुक्त कर सकता है और न अधिकार-प्रदान की रीति के इस अनुकरण के द्वारा कोई 'नज़राने' का हो ऐसा प्रसंग उपस्थित होता है कि जिसे अन्तिम रूप से जागीर की स्वीकृति मानी जाय; मेवाड़ में ऐसा नजराना उस जागीर की एक वर्ष की आय जितना कायम किया जाता है। कच्छ में इसको केवल उत्तराधिकार की साधारण मान्यता के रूप में समझा जाता है और इसके बदले में कोई भेंट या मुलाकात आदि की रस्म भी पूरी नहीं की जाती। ऐसा प्रसंग रावों की गद्दीनशीनी, विवाह अथवा राजकुमार के जन्म के अवसरों के लिए ही सुरक्षित है जब प्रत्येक जाड़ेचा सरदारको दरबार में उपस्थित होकर सम्मानप्रदर्शन और 'नज़राना' पेश करना पड़ता है।
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