Book Title: Paschimi Bharat ki Yatra
Author(s): James Taud, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratan Granthmala

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Page 649
________________ ५१८ ] पश्चिमी भारत की यात्रा सं० ७० (पृ० ३६३) १. बेलावल में प्राप्त शिलालेख जो मूलतः सोमनाथ मन्दिर का है।' सर्वेश्वर को नमस्कार, विश्वज्योति* को (नमस्कार) वर्णनातीत मूर्ति को नमस्कार, उसको नमस्कार जिसके चरणों पर सभी नमस्कार करते हैं। मोहम्मद के वर्ष ६६२ में और बिक्रम (विक्रम) १३२० में तथा श्रीमद्बलभी (संवत्) १४५ में और सीहोह (शिव-सिंह) संवत् १५१ (१२६४ * इससे सहज ही में ज्ञात होता है कि सोमनाथ सूर्य का नाम है, सोम अथवा चन्द्रमा का स्वामी । संक्षेप में, सूर्यदेव बालनाथ जिसका प्रतीक लिङ्गम्' या फलोत्पादक देवता है । ' इस लेख का सर्व प्रथम उल्लेख कर्नल टॉड ने ही किया है परन्तु उनका यह तथाकथित अनुवाद केवल अनुमान और कल्पना पर ही आधारित है क्यों कि अनुवाद और मूल लेख की बातें मेल नहीं खातीं । बाद में यह लेख श्री ई० हुल्ज (E. Hultzscb, Ph. D., Vienna) द्वारा इण्डियन एण्टीक्वेरी के वॉल्यूम ११ के पृष्ठ २४१-२४५ पर सन् १८८२ ई० में प्रकाशित हुआ है। उसी के आधार पर कुछ मुख्य बातें नीचे दी जाती हैं। १ इस लेख में एक साथ चार संवतों का उल्लेख है अर्थात् हिजरी सन् ६६२, विक्रम संवत् १३२०, वलभी संवत् १४५ और सिंह संवत् १५१ आषाढ़ वदि १३ । विक्रम संवत् १३२० का प्रारम्भ कार्तिक मास से होता है, जो सन् १२६३ ई. के मध्य में पड़ता है और प्राषाढ़ मास १२६४ ई. के मध्य में पड़ता है। वूस्टन फोल्ड ( Watstenfeld ) सारिणो के अनुसार १२६४ ई० का मध्य हिजरी सन् ६६२ के प्रारम्भकाल में पड़ता है, जो ४ नवम्बर १२६३ ई० को शुरु होता है। इस प्रकार विक्रम संवत् और हिजरी सन् का मेल बैठ जाता है । वलभी संवत् के विषय में स्थानीय जानकारों का कहना है कि वलभी विध्वंस वि० सं० ३७५ अथवा ३१८-३१६ ई० में हुआ था। अलबेरुनी (Alberuni) ने वलभी संवत् का प्रारम्भ शक संवत् २४१ से लिखा है, जिसके अनुसार विक्रम संवत् ३७६ अथवा ३१६-३२० ई० प्राता है। प्रस्तुत लेख में दिया हुमा वलभी संवत् विक्रम संवत ३७५ वाले मत से मेल खाता है। सिंह संवत् विक्रम संवत् ११६६ अथवा १११३ ई० में प्रारम्भ होता है । कर्नल टॉड (Col. Tod.) ने इसको शिव संवत् या सीह संवत् लिखा है और देवद्वीप के गोहिलों द्वारा प्रचलित संवत् बताया है। २. इस शिलालेख में अर्जुनदेव के बारे में बहुत कम सूचना दी गई है। यद्यपि यह उसी के समय में उत्कीर्ण कराया गया है । कर्नल टॉड (Col. Tod.) ने जो कुछ अपनी कल्पना के आधार पर लिखा है उसी का आश्रय लेकर किनलॉक फारवस (Kinloch Forbes) ने रासमाला में अर्जुनदेव का हाल लिखा है । इस विषय में यहाँ विशेष टिप्पणी उपयुक्त नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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