Book Title: Paschimi Bharat ki Yatra
Author(s): James Taud, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratan Granthmala

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Page 670
________________ বহিরি [ ५३६ संख्या १५ जूनागढ़ के शिलालेख, जो पवित्र पर्वत गिरिनाल (गिरनार) के भवनों में से प्राप्त किए गए हैं। (बम्बई के मिस्टर वॉथेन द्वारा अनूदित ) । सं० १- (गणेश को नमस्कार करके) पवित्र गिरनाल का वर्णन करना मेरे लिए उचित है । पर्वतों के स्वामी इस रैवताचल पर भक्त और साधु-सन्त निरन्तर भक्ति, यश और तपस्या में निरत रहते हैं। उस पवित्र गिरनार पर एक प्रसिद्ध स्थान है जो घने जंगलों से घिरा हुआ है, उसके बीच-बीच में विशाल और सुन्दर मन्दिर हैं, जलाशय तथा अनेक धार्मिक स्थान हैं जिनसे यह पर्वत सुसज्जित और सुशोभित है । इन एकान्त स्थानों में साधु-महात्मा मद और लोभ का त्याग करके वासना पर विजय प्राप्त करते हुए विचरते हैं और सर्वशक्तिमान् परमात्मा का ध्यान करते हैं। विविध प्रकार के दृश्यों से समन्वित इस स्थान पर पुण्यात्मानों को (उनके तप के फलस्वरूप) सुख, सौभाग्य श्री... .."दूरे प्रसरणपरिते... ... .... .. .""क्षणिकमत महान्याल संरम्भसिन्धुः । ... ... ... ... ... ... ....... ... .[तवादिविमलशिवमुनि]र्माननीयो[नवेन्युः] ॥ ५५ ।। ... ... ... ... [वीक्ष्य च . पावपो अङ्गीकृता... ... ... ... ... ... ॥ ५६ ॥ ४६. [निःशेषपाण्डिमणालखण्ड भक्त्याऽस्य तुष्टः प्रतिपन्नवयंः प्रशरितमेतामयमधार] ॥ ५७ ॥ याव द्विष्णोरसि... ... ... ...। यावाणी विहरति वि(धुर्वक्तृपिण्डान्तराले(ियो)वलयमखिलं गण्डयंती यमस्य ।। ५७ ॥ [एते]... ... ... .."वेन प्रासादाः ४७. .... ... सूत्रिता: शुभाः । लिखि... ... ...[॥ ६०॥] श्रीमविक्रमनृप संवत् १२७३ वर्षे वैशाख शुवि ४ शुके [निष्पा] वितमिति शिवमस्तु ।। छ । मंगल महाश्रीः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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