Book Title: Paschimi Bharat ki Yatra
Author(s): James Taud, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratan Granthmala

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Page 653
________________ ५२२ ] पश्चिमी भारत की यात्रा सं० ८ (पृष्ठ ३६८) सूरज मडू (Mudu) द्वारा, कोरॉसी, चूडवाड़ का शिलालेख (संसार से समस्त मनोध्वान्त का नाश करने हेतु सूर्य को नमस्कार करके) , सहस्रकिरणों वाले, अन्धकार का नाश करने वाले, पृथ्वी और पहाड़ों पर प्रकाश फैलाने वाले, कमलों को विकसाने वाले सूर्यदेव ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ। ऐसे सूर्य से उत्पन्न वे राजपुत्र हुए जिन के अश्व-खुरों के नीचे (शत्रुओं) का गर्व अन्धकार में दब गया । इन में से एक ब्राह्मण-जाति (Bramin race) का चक्रवर्ती राजा हुमा । वह विद्वान और वीर था, छत्तीसकुली राजपुत्र उसकी आज्ञा मानते थे। उसका निवास स्थान ........... अचल (प्राब) (Rabarri Achil) की तलहटी में मरुस्थली के मण्डल में था । उसी के वंश में बहुत सी पीढ़ियों बाद लूणङ्ग (Lonung लूणिग?) पृथ्वीपति हुअा; अपनी विशाल सेना, शस्त्रास्त्रों और नौ-सेना के बल से उसने सौराष्ट्र पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उसका पुत्र भीमसिंह परमवीर और योद्धा हा। उसके पुत्र लवणपाल ने अपने पड़ोसियों का धन लूट लिया । उसका पुत्र भी महान योद्धा, अभिमानी था और अपने भुजबल के कारण सूर्य के समान प्रचण्ड था ऐसा भूमिपाल परम प्रसिद्ध हुआ, जिसका पुत्र लक्ष्मणसिंह था । वह (Panihul ? ) से जूनागढ़ चला पाया; वह इस इन्द्रपुर का साक्षात् इन्द्र था । उसका भतीजा राजसिंह था जिसने नव-मण्डलों को एक ही राज्य में सुदृढ़ किया। उसका पुत्र खेमराज राजाधिराज था । उसका पुत्र सोमब्रह्म और उसका बेनगज परमपराक्रमी हुआ। सौराष्ट्र में बहुत से पाप-मोचन स्थल हैं... श्रीमत् खंगार था। श्रीमोहम्मद बहन्मद पादशाह (Sri Mohummed Brehummud Padshah) ने गिरनार में भी अपनी प्रान फिरवा दी और खंगार और उसके भाई भीमदेव के अतिरिक्त सभी से अपने 'दीन' (धर्म) का मान करवाया। उस (खंगार) की बहन रतनदेवो थी जो राजसिंह को ब्याही गई । उसी का पुत्र मूलदेव था जिसने कोरासी (Koraussi) बसाया। उसका पुत्र मूलराज [?] (Mooraj) था जो मत्तगज के समान था। उसका पुत्र शिवराज और उसका मालदेव हुआ । सूर्यदेव को पहले ही विदित था कि उसका पुत्र यहाँ पर सूर्यमन्दिर का निर्माण करावेगा। मालदेव ने इसे बनवाया । उसकी पत्नी परमार-कुल की बनलादेवी सीता के समान पतिव्रता थी। हवन-यज्ञादि के अनन्तर सूर्य-प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई। (इसके बाद भतीजे भतीजियों के कुछ नाम दिये हैं जिनमें मूलराज बाघेला का भी नाम है) संवत् १४४५, फाल्गुन बुद ५, सोमवार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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