Book Title: Paschimi Bharat ki Yatra
Author(s): James Taud, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratan Granthmala

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Page 637
________________ पश्चिमी भारत की यात्रा सं० २ (१०६०) बहुत ढूंढने पर भो ग्रंथकर्ता के कागज पत्रों में इस लेख को नकल नहीं मिली। सं० ३ (पृ० १९७) कुमारपाल सोलंकी का शिलालेख; चित्तोड़ में ब्रह्मा के मन्दिर में स्थित, जो लाखण का मन्दिर कहलाता है । जो जल में निवास करने में आनन्दित होते हैं, जिनके जटाजूट से निरन्तर अमृतबिन्दु झरते हैं,वे महादेव तुम्हारी रक्षा करें। समुद्र में से उत्पन्न समुज्ज्वल रत्नराशि के समान चालुक्य वंश में कितने ही राज-रत्न पैदा हुए, उन्हीं की परम्परा में पृथ्वोपति मूलराज हमा। उसकी समानता कौन कर सकता था, जिसकी निर्मल कोति प्रकाशमान रत्न के समान अपनी किरणों से पृथ्वी-पुत्रों में आनन्द और क्षमकुशल का प्रसार करती थीं ? उस वंश में बहुत से बलशाली राजा हुए परन्तु उससे पूर्व किसी ने भी ऐसा महान् यज्ञ नहीं किया था । २०-संवत् १२६५ वर्षे वैशाख शु० १५ भौमे चोलुक्योद्धरणपरमभट्टारकमहाराजाधिराज श्रीमद्भीमदेव प्रवर्द्ध-- २१-मानविजयराज्ये श्रीकरणे महामुद्र-मत्य महं० ठा(प्रा)भूप्रभृति समस्तपंचकुले परिपंथति चन्द्रावतीनाथमांड-- २२-लिकासुरशम्भुश्रीधारावर्षदेवे एकातपत्रवाहकत्वेन भुवं पालयति । षट्दर्शन अवलम्बन स्तंभसकलकलाकोविद२३-कुमारगुरुश्रीप्रह्लादनदेवे योधराज्ये सति इत्येवं काले केदारराशिना निष्पादितमिदं - कोतनं । सूत्र पाहूणह२४-केन [उस्कोणं] __ अनुवाद में कितने ही शब्द और उनके अर्थ स्पष्ट नहीं हुए हैं। यथा- 'श्रीकरण' 'चन्द्रावतीनाथमाण्डलिकासुरशम्भु' आदि पदों के अर्थ; 'केदारराशि' को केदारेश्वर लिखा है और शिलालेख के लेखक का नाम लखमीधर लिखा है जब कि मूल लेख में पाह्लगह लिखा है। यह लेख 'इण्डियन एण्टीक्वेरी वॉल्यूम ११' सन् १८८२ में प्रो० एच० एच० विल्सन के अनुवाद सहित छपा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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