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प्रकरण • २३; बृटिश हस्तक्षेप और भायाद की स्थिति [ ४६५ इस हस्तक्षेप के परिणाम में सच्ची मित्रता कायम हुई और लगे हाथों अनिवार्य बृटिश सहायक सेना आ गई। राव भारमल की चिड़चिड़ाहट ने बढ़ कर पागलपन का रूप ले लिया, फलतः उसको गद्दी से उतारा गया, बन्दी बनाया गया
और उसके पुत्र राव देसल को 'गद्दी' पर बिठा दिया गया। वह बालक है इसलिए एक राज-प्रतिनिधि-सभा गठित की गई, जिसमें प्रमुख जाड़ेचा सरदार
और पुराने राज्य कर्मचारी सम्मिलित किए गए हैं। उन्हीं में से एक, मुझे सूचना देने वाले, रतनजी भी हैं, जो अंग्रेजों के परम भक्त हैं। बृटिश रेजीडेण्ट को हो प्रतिनिधि सभा का प्रधान माना जाता है। जैसा मैंने देखा व सुना है, सभी काम ठीक-ठीक चल रहा है, सर्वत्र शान्ति है, सभी लोग अपने परिश्रम के फल अथवा पैतृक अधिकार का उपभोग कर रहे हैं और जब तक राव देसल नाबालिग है तब तक इस व्यवस्था में कोई बदल होने की सम्भावना नहीं है । भविष्य की बात उसके स्वभाव और इस अन्तरिम काल की दशा से लाभ उठाने की योग्यता पर निर्भर है। जिन जागीरदारों ने अपने राजा से दब कर रहने की अपेक्षा विदेशी शक्ति को प्राजादी समर्पण कर देना श्रेयस्कर समझा था उन्होंने उसी शक्ति से अपनी-अपनी जागीर की अक्षुण्णता का आश्वासन प्राप्त किया है और जो कुछ थोड़ी बहुत प्राधीनता पहले थी वह भी अब 'कुछ नहीं के बराबर रह गई है; हाँ, मध्यस्थ के पास उभय पक्ष की अपीलें निरन्तर पाती रहेंगी और सम्भवतः वह दोनों की ही घृणा का पात्र बना रहेगा।
तो, ये हैं सायरास्ट्रीन की विलक्षण और संस्मरणीय बातें; मैं फिर कहता है कि यहां बसने वाली जातियों की विभिन्नता और प्राचीन काल के अब तक बचे हुए इमारती अवशेषों के कारण यह प्रदेश भारत में सब से बढ़कर है। अब सब कुछ बृटिश सत्ता की शक्तिशाली पकड़ में है। सर्वोच्च सत्ताधारी गायकवाड़, अणहिलवाड़ा का स्वामी, उसके सामन्त, गोहिल, चावड़ा, घुमक्कड़ काठी, जगत्कूट के जल-दस्यु और साम तथा यदु के वंशज जाड़ेचा-सबने अपने सामन्ती संघ के उस आकर्षण को समाप्त कर दिया है, जिसके द्वारा उनका और उनके राजानों का मापसी संबंध बना हुआ था-इन्होंने अब स्वेच्छा से विदेशी के जूए के आगे सिर झुका दिया है। यहूदियों के प्रतिभाशाली 'उपदेशक' और राजपूतों के अन्तिम महान् भाट ने प्रायः समान शब्दों में ही नाबालिगी के ख़तरों को घोषणा की है—'हे देश ! यह महान् दुःखपूर्ण बात है कि तेरा राजा बालक हैं। इसके आगे चन्द पूर्ति करता है और जब स्त्रियां राज्य करती है' और ऐसी परिस्थिति के परिणाम राजपूतों के लिए उपदेशक के इस पद्यांश 'और जब तेरे राजकुमार प्रातःकाल में भोजन करते हैं' से भी
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