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पश्चिमी भारत की यात्रा था।' यदि एरिअन का अभिप्राय यह है कि उच्चतर एशिया से बाद में और भी लोग आकर सुम्माओं में मिल गए थे और उनको वह सीथिक जाति की संज्ञा देता है तो अधिक छानबीन की आवश्यकता नहीं रह जाती; परन्तु, जब यह कहा जाता है कि उस क्षेत्र के सर्वाधिक-संख्यक निवासी बलूच जाति के लोग धर्म-परिवर्तित जीत ही थे, जो अपने को यदुवंश का मानते थे, तो इस प्रस्ताव पर उन लोगों को अवश्य ध्यान देना चाहिए जो हिन्दू जाति की नृ-वंश-शास्त्रीय शोध में लगे हुए हैं। __ जब सिकन्दर भारत में था तो उस समय की प्रभुसत्ता-सम्पन्न जाति की वंशावली का विवरण देते हुए एरिअन कहता है कि उनके पूर्व-पुरुष का नाम 'बुडिअस' (Budaeus) अथवा बुध था; इस प्रकार वह यदु वंशावली के साथ बौद्ध [बुध] का घनिष्ठ सम्बन्ध सूचित करता है, जो यादवों के इतिहास से पूरापूरा मेल खाता है । हिन्दू-इतिहास के विषय में एरियन और जिन अन्य लेखकों ने लिखा है वे अपनी समस्त सूचना के लिए मेगस्थनीज़ के अखबारात के प्रति आभारी हैं, जो अब दुष्प्राप्य हैं; मेगस्थिनीज़ को सिल्यूकस ने प्राग [प्रयाग] के पास प्रासी (Prasii) के राजा के दरबार में राजदूत बनाकर भेजा था, जहाँ यादव-शक्ति की मुख्य और अत्यन्त प्राचीन राजधानी स्थित थी । यहाँ का राजा सान्द्रकोटस (Sandracottus), जिसके नाम में कितने ही परिवर्तन बताए गए हैं, कहते हैं, पौराणिक चन्द्रगुप्त था, जिसका नाम बहुत पुराने समय से यदु, चौहान
और परमार जातियों की वंशावली में मिलता है। परन्तु, नाम के इस साम्य को लेते हुए और साथ ही ग्रीक लेखक द्वारा सूचित तत्कालीन प्रमुख राजवंश के पूर्वपुरुष के 'बुडियस' नाम पर विचार करते हुए हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचने में झिझक नहीं होती कि वह प्राग का राजा यदुवंशी ही था। भारत में सार्वभौमराज्य खो देने के बाद भी यादवों की सत्ता किसी तरह-बराबर बनी रही, इस
• इण्डो-सीथिक जातियों ने अनेक भारतीय नगरों को अस्थायी रूप से 'मि-नगर' अथवा 'नगर' नाम से अभिहित किया है। बाद में जब इन जातियों का प्रभाव कम हो गया तो उन नगरों के मूल नाम पुनः प्रचलित हो गए। यथा, डॉ. मुलर ने इन्दौर का तत्कालीन नाम मि-नगर बताया है। इसी प्रकार विन्सेण्ट स्मिथ ने चित्तौड़ से ११ मील उत्तर में स्थित माध्यमिका नगरी को 'मि नगर' माना है। डॉ. डी. आर. भाण्डारकर का कहना है कि मन्दसौर का नाम 'मि-नगर' था। इसमें प्राचीन 'मिन' या 'मन' सुरक्षित रह कर 'दसोर' या दशपुर (दश उपनगरों वाला नगर) से मिल गया है। यहां जिस 'मि-नगर' का उल्लेख है वह 'बहमनाबाद' उ०२५°५०', ६८०५०' पू. हो सकता है।
Ancient India by Ptolemy-S. N. Majumdar; pp.370-372
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