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प्रकरण - १७; सुन्दरजी का परोपकार
. [३८१ नगर के परकोटे से प्रारम्भ कर के उसने जंगल में हो कर एक बड़ा अच्छा रास्ता निकाला है, जिसके दोनों ओर आम तथा जामुन आदि के वृक्ष लगाए हैं, जो कालान्तर में थके हुए यात्री को छाया और भोजन दोनों ही प्रदान कर सकेंगे। यह मार्ग जहाँ सोनारिका से मिलता है वहाँ एक लम्बा पत्थरों से जड़ा रास्ता है, जो नदी के समानान्तर चलता है और उस स्थान पर समाप्त होता है जहाँ पर यह दर्रा के संकड़े रास्ते हो कर पार निकलती है और जहाँ तीन मेहराबों वाला सुदृढ़ एवं सुन्दर पुल है, जिस पर जालीदार खुली दीवारें बनी हई है। इससे दृश्य का मनोरम प्रभाव तो बढ़ ही जाता है, साथ ही इसकी उपयोगिता से सुन्दरता में भी चार चाँद लग जाते हैं क्योंकि इससे गरीब आदमियों की बड़ी भारी जमात को रोटी ही नहीं मिलती वरन् जब यह पूरा हो जायगा तो अचानक बाढ़ के कारण नदी में भक्तों के बह जाने का समस्त भय भी पूरी तरह दूर हो जायगा। जो सब से कठिन भाग था वह तो पहले ही पूरा हो चुका है और यद्यपि सुन्दरजो मर चुके हैं, परन्तु उनके पुत्र और उत्तराधिकारी के कारण इसमें कोई शिथिलता नहीं आई है। वह अपने धार्मिक उत्साह से पिता की आज्ञा को पूरा कर रहा है और पुलिया को नदी के दूसरे उतार तक बढ़ा रहा है, जहाँ से आगे यह उपयोगी की अपेक्षा सुन्दर अधिक होगा। पूल पर से देखने पर बड़े प्रभावोत्पादक दृश्य दिखाई देते हैं। सामने ही पर्वत-श्रेणी के बीच दुर्गाद्वार में होकर गिरनार का उच्चतम गम्भीर शिखर दिखाई पड़ता है और पीछे की ओर 'जूनागढ़' का किला अपने 'गौरवपूर्ण पराभव' के कारण नीचे बैठता-सा जा रहा है। वह ऐसा मालूम होता है मानों पवित्र पर्वत पर जाने के लिए घाटी के मार्ग की सुरक्षा हेतु ही कोई सहायक किला बनाया गया हो।
अब पुल को छोड़ कर मुझे उस चीज़ का वर्णन करना है जो पुरातत्त्वानुरागियों के लिए सब से अधिक महत्त्वपूर्ण स्मारक है-ऐसा स्मारक जो विगत समय की अपरिचित भाषा में बोलता है और फिरंगी विद्वान अथवा 'सावन्त' [सन्त ?] को उस अज्ञानान्धकार को हटाने के लिए आमन्त्रित कर रहा है, जिससे वह युगों से प्रावृत हो रहा था। एक बार सुन्दरजी को फिर धन्यवाद दें कि उनकी उदारता के बिना यह आगे भी दुर्गम्य बनों के बीच उलझे हुए घने बबूलों के दुर्भेद्य जाल से ढंका पड़ा रहता । मैं पहले दो लघु स्थानों के बारे में कहूँगा । पहला एक छोटा-सा सुन्दर कुण्ड है जो नगर के दरवाजे से निकलते ही मिलता है और 'सुनार का कुण्ड' (Goldsmith's pool) कहलाता है। दूसरा, दुर्गा की पहाड़ी के नीचे ही बाघेश्वरी माता का छोटा-सा
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