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प्रकरण - १८% पार्श्वनाथ का मंदिर
[ ३६६ इस मत के अनुयायी अपरमतावलम्बियों की तरह नेमिनाथ की मूर्तियों के बिल्लोर या हीरे इत्यादि के नेत्र नहीं लगाते और ये लोग स्त्रियों के मोक्ष में भी विश्वास नहीं करते यद्यपि वे महान् नग्न श्रीपूज्यजी का भक्ति-भाव से पूजन करतो हैं और वे भी उसे परम अक्षब्ध भाव से ग्रहण करते हैं। श्रीपूज्यजी के व्यक्तित्व की एक और विशेषता है-वह यह कि वे अपने हाथ से भोजन नहीं करते; यह कार्य उनका कोई साधारण सेवक सम्पन्न करता है। इस मन्दिर में और कोई विशेष उल्लेखनीय बात नहीं है।
इसके आगे तीन मन्दिरों की त्रिकुटी है जिसका निर्माण अथवा जीर्णोद्धार तेजपाल और बसन्तपाल [वस्तुपाल] नामक रईस बन्धुत्रों ने कराया था जिन्होंने अपने विपुल धन का व्यय आबू के मन्दिरों पर किया था । संवत् १२०४ [११४८ ई०) के एक शिलालेख से, जो यहाँ मिला है, ज्ञात होता है कि ये मन्दिर प्राबू के मन्दिरों से लगभग आधी शताब्दी पुराने हैं परन्तु विस्तार और मूल्यवत्ता की दृष्टि से उनका उनसे कोई मकाबला नहीं है । ये तीनों एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित हैं जो पत्थरों से जड़ा हुआ है । बीच के मन्दिर मैं उन्नीसवें जैन-तीर्थङ्कर मल्लिनाथ की मूर्ति है; इनके दाहिनी ओर का मन्दिर सुमेरु और बायीं ओर का समेत-शिखर कहलाता है जो इन अद्वैतवादियों के 'पञ्च तीर्थो" अथवा पवित्र शिखरों में से दो सुप्रसिद्ध हैं।' मल्लिनाथ का मन्दिर, जिनकी घन-श्यामल मूर्ति में नेमिनाथ का भ्रम उत्पन्न हो जाता है, चार मंजिलों का है जो एक के बाद एक छोटी होती चली गई हैं और सब से ऊपर आठवें तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभ की छोटी-सी मूर्ति विराजमान है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक दिशा के कोने पर भी एक-एक मूर्ति स्थित है । एक कोने पर पीले रत्न की बनी हुई मेरु-शिखर की लघु प्राकृति है जो छत के पार चली गई है।
प्रागे वाला मन्दिर जो पार्श्वनाथ को अर्पित है, सोमप्रीति राजा का बनवाया हुआ है, जिसके विषय में मैंने प्राय: उल्लेख किया है कि वह विक्रमपूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ था। यह इस राजा द्वारा निर्मापित तीसरा मंदिर है जिसे खोज निकालने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। शेष दो मन्दिरों के
'पार्श्वनाथ के नाम पर पवित्र समेत-शिखर बिहार में है जो प्राचीन मगधराज्य का हो भाग
था। वहीं पर पाश्र्वनाथ के मतावलंबी पूर्व समय में, प्रत्यधिक संख्या में बसते थे। मेरुशिखर, जिसको स्थानीय नाम प्राप्त है, सिन्ध नदी के बहुत पश्चिम में है। और जैसा कि मैंने अनुमान किया है (Balk Bamian) (बल्ख बामियां) की पोर है जहां अबुल फजल द्वारा परिणत विशाल जन-मूर्तियां अब तक मौजूद है।
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