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पश्चिमी भारत की यात्रा
सहित वह आगे चल कर इसलाम-धर्म में परिवर्तित हो गया। परम्परागत कथानों में कहा गया है कि उसी का पुत्र सिन्ध से सेना लेकर आया और उसी ने गूमली का विनाश कर दिया।
प्राय: देखा गया है कि हिन्दू भाटों की नीरस वंशावलियों में प्रसंगत: आई हुई कथानों में कोई न कोई उपदेशात्मक अथवा प्रबोधात्मक तत्व अवश्य होता है और ऐसा बहुत कम अवसरों पर ही पाया गया है कि राज्यों के विनाश के मूल में कोई न कोई-पाप कर्म निहित न होता हो। एक ठठेरे की पुत्री का अपहरण करने के कारण गूमली के राजाओं को गद्दी से हाथ धोना पड़ा और जहाँ वे सम्पूर्ण पश्चिमी प्रायद्वीप के स्वामी थे वहाँ उसका दसवां भाग भी उनके अधिकार में न बच पाया। ठठेरे की लड़की धर्मात्मा थी, और हम यह भी मान लें कि वह सुन्दरी भी थो; उसने राजा के कुत्सित प्रस्तावों को निरादरपूर्वक ठुकरा दिया और अपने को उसकी शक्ति के सामने असुरक्षित समझ कर उसने चिता की शरण ग्रहण की। परन्तु. कामान्ध राजा ने किसी भी परिणाम की परवाह न करते हुए उसे हस्तगत करने को जिद की। जब उसकी मांग स्वीकार नहीं को गई तो उसने मन्दिर को भ्रष्ट कर दिया और अपने शिकार को घसीट कर बाहर ले आया। मन्दिर के पुजारी शाप देते रहे, चिल्लाते रहे, उसको और उसके वंश को कोसते रहे और अंत में बदला लेने में असमर्थ होकर देवता की वेदी के सामने उन्होंने अपने आपको बलिदान कर दिया। इसके बाद ही सिन्ध से आक्रमणकारी आ गए तब गूमलो को घेर लिया गया और छः मास तक घेरे का सामना होता रहा । लोगों का माल-मता, परिवार और बाल-बच्चे सब भीमकोट में रख दिए गए और उनकी रक्षा का भार मेरों को सौंपा गया; राजा, उसके सामन्त और सहायक राजपूत तलहटी अथवा नीचे के शहर की रक्षा में संलग्न हुए। रात को जब घेरा ढोला पड़ता तो रक्षक लोग अपने परिवार वालों से मिलने के लिए भीमकोट में चले जाते । घेरे वालों ने इसका लाभ उठाया, गमली में घुस गए और ताबड़तोड़ नसेनी लगा कर भीमकोट में उतर गए। अन्धाधुन्ध कत्ले-नाम हुआ जिसमें गूमली का तारक्विन (Tarquin)' श्योजो, उसके सगे-सम्बन्धी और मित्र मोदि टुकड़े-टुकड़े करके मार दिए गए। वंशावली में उनके नाम गिनाए गए हैं जिनमें से बहुत से तो
१ रोम का सातवां अन्तिम राजा जिसका कथानकों में उल्लेख है। उसने ई.पू. ५३४ में
राज्य करना प्रारम्भ किया था। वह बड़ा पराक्रमी था और उसने रोम के राज्य का बहुत विस्तार किया था।-N S. Ep. II99
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