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प्रकरण - १९; हालामण राजकुमार
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डिया) जेठवा ही पुरस्कृत हुआ । इस वंशवृत्त का यह दुर्भाग्य है कि मेवाड़ का हमीर गूमली के विनाश से चार शताब्दी बाद हुआ था ।
गूमली के सौवें राजा भाणजी ने अणहिलवाड़ा के युवराज कर्ण को युद्ध में बन्दी बना लिया और इसके बदले में उसने बालराय से 'राणा' की वर्तमान उपाधि प्राप्त की । भाणजी के नाम के साथ ही हम जेठवों की सुदीर्घ वंशावली में किसी टिकाव पर पहुँचते हैं । उसके राज्य-काल में 'गोरी सुलतान का फौजी थाना मांगरोल' में था; वह गूमली और श्रीनगर देखने आया तथा जेठवा रानी का धर्म - भाई बन गया ।' भाणजी का उत्तराधिकारी श्योजी हुना जिसके पुत्र और जेठवा शासन के अधिकारी का नाम सालामन ( Salamun ) हुआ ।
एक पड़ौसी राज्य के चौहान राजा की पुत्री काव्य-प्रतिभा से सम्पन्न थी श्रौर उसकी रचनाओं की सर्वत्र प्रशंसा होती थी। वह अपनी प्रतिभा के आलोक को किसी परिसीमा में बद्ध न रख कर [मुसलमानों के श्रागमन से पूर्व ] उस वीर-काल में राजपूत रमणियों को प्राप्त स्वतन्त्रता का उपभोग करती हुई अपने पूर्ण पद्यों को राजकुमारों के पास पूर्ति के लिए भेजती थी। ऐसा ही एक काव्यात्मक प्रपत्र गूमली में भी पहुँचा प्रोर चौहानों के घुमक्कड़ भाट ने भरे दरबार में उसे राजकुमार सालामन के हाथ में प्रस्तुत किया। उसने तत्काल ही उस पद्य की पूर्ति कर दी और समय पर निश्चित पुरस्कार प्रर्थात् चौहानों की सैप्फो (Sappho) 3 का हाथ भी प्राप्त कर लिया। परन्तु जेठवा राजा ने अपने पुत्र की सफल प्रतिभा पर गर्व न कर के उसके इस कार्य को ईर्ष्यायुक्त क्रोध की दृष्टि से देखा तथा उसको देशवाटी ( देश निकाले) का दण्ड दिया । सालामन अपनी वधू को लेकर सिन्ध चला गया और वहाँ के राजा ने उसको दोबा (Doba ) और धरज (Dharaj) की भूमि गुजारे के लिए प्रदान की । इस प्रकार वह वहाँ पर रहता रहा और उसके बहुत सी सन्तानें भी हुईं जिनके
" कहते हैं कि, बहुत शताब्दियों बाद, मांगरोल पर मकवाणों ने अधिकार कर लिया था और प्रम भी मेरा विश्वास है कि यह उन्हीं के अधिकार में है । मकवाणे हूणों की एक शाखा माने जाते हैं और सम्भवतः इस जाति के कुछ लोग मीनागढ़ ( Minagara ) में राज्य करते थे ।
* पश्चिमी भारतीय बोलियों में 'स' का उच्चारण 'ह' हो जाता है । अतः यह सालामन प्रसिद्ध 'हालामण राजकुमार' की कथा का नायक है ।
3 ग्रीक कवयित्री । वह मिटिलिनी ( Mitylene) में छठी शताब्दी ईसा पूर्व हुई थी । उसके विषय में कितनी ही किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। प्राचीन काल की वह बहुत बड़ी कवयित्री मानी जाती है। उसके दो काव्य और कतिपय स्फुट पद्य उपलब्ध होते हैं । उसकी कविता यद्यपि वासनात्मक होती थी परन्तु उसमें भाषा की स्फीतता स्पष्ट परिafara -N. S. E; pp. 1100-01
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