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प्रकरण - १९; जेठवों के स्मारक
. [ ४१७ की आकृतियाँ हैं, जिनका कमर तक का भाग मनुष्य जैसा है और नीचे का बकरे-जैसा। ____ 'रामपोल' से मैं जेठवों के स्मारक-'पालियों' पर गया जिन पर घास और कंटीली थवरें खूब उगी हुई हैं। बहुत से पालिये तो टूट-फट गये हैं और उन पर जो लेख थे वे प्राय: सभी लुप्त हो चुके हैं। ध्यानपूर्वक परिश्रम से खोजने पर मुझे पांच स्मारक मिल गये, जो यद्यपि संक्षिप्त थे परन्तु उनके लिए 'विनाशक' को धन्यवाद देता हूँ कि (उसने उन्हें छोड़ दिया कि जिससे) गूमली के विनाश-सम्बन्धो पारिवारिक कथाओं की सम्पुष्टि हो जाती है । इनसे यह सिद्ध होता है कि राजपूत अहंभावी नहीं होते और उनके स्वभाव में यह बात नहीं है कि देश के लिए मरने वाले में ही विश्व के समस्त सद्गुणों का आधान करें-उन्होंने मतक की प्रशंसा में केवल साधारण नाम और आत्म-बलिदान की तिथि लिख कर ही सन्तोष कर लिया है; यथा
संवत् १११२, पोस मास को ७...."धालोत संवत् १११२, कार्तिक मास की १३..."भरुग संवत् ... " विकट, ऊमरा और वेणजी जेठी, हरिया बनिया चोहान, और सूंसिरवा जेठवा । संवत् १११८, फागुन (वसंत) सोमवार पूर्णिमा-महाराजा हरीसिंह जेठवा । संवत १११६, कात्तिक (दिसम्बर) की ६, वीर जेठवा ।
इस प्रकार जिन थोड़े से अवशेषों में तिथि के रूप में जो कुछ प्राप्त हो सका उससे ज्ञात होता है कि यह सब सामग्री १०५६ ई० से १०६३ ई. तक की अथवा महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद तीस से चालीस वर्षों के बीच की है। अचिरात् हम देखेंगे कि गमली के नाश एवं पतन के समय से इन तिथियों का कहाँ तक मेल बैठता है ?
जब हम भाँवल में अपने डेरे पर लौटे तो इस प्रान्त के राजनैतिक प्रतिनिधि (Political Agent) मेजर बार्नवैल (Major Barnewell) को देख कर बड़ी प्रसनता हुई; वे (डाक्टर मैकाडम Dr. Macadam के साथ) जाम की राजधानी से चल कर हम से मिलने आए थे। मैं उनके सौजन्य के प्रति आभारी हूँ कि उनकी सहायता से मैं गूमली के जेठवा राजाओं का वृत्तान्त लिख सका। वैसे, इस प्रान्त के एक सजीव इतिवृत्त-रूपी बुद्धिमान् चारण के मुख से, जो सौराष्ट्र के इतिहास का भी समान रूप से जानकार था, परम्परागत वृत्तान्त सुन कर मैंने जेठवों के इतिहास की रूपरेखा तैयार करली थी, परन्तु मेजर बार्नवैल ने अपना एक
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