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पश्चिमी भारत की यात्रा निरीक्षण किया था उसने उसको 'पोरस पर सिकन्दर की विजय का लेख' घोषित किया था । मैं इस विषय को विद्वानों (Vedya) और बम्बई की एशियाटिक सोसाइटी द्वारा इन पत्थरों पर समय के आगामी आक्रमण से पूर्व ही पूरी छानबीन के लिए छोड़ता हूँ, क्योंकि ढेर की चोटी पर तो ऊपरी सतह बिलकुल छिल गई है, जैसा कि प्राय: ऐसे पत्थरों में होता है और इनको शिलालेख के लिए अनुपयुक्त प्रमाणित करता है-इसी बात को लेकर मुझे गिरनार के मन्दिरों में प्रायः पछताना और दु:खी होना पड़ा था। इसी लिए हिन्दू-लोगों ने अपने लेखों के लिए भूरा चट्टानी पत्थर, सुदृढ़ चूने का पत्थर, काला या भूरा अथवा स्लेट या पतली परत का पत्थर ही चुना है।
पिछले अक्षर बाद की तिथि के हैं और इनमें सुधार करने का जैनियों में साधारणतया प्रचलन था, और वह भी इतना पहले कि बारहवीं शताब्दी में। इनका मैंने एक बड़ा संकलन किया जिनमें सबसे पुराना पांचवीं शताब्दी का था, जिसमें जीत (Jit) या जीट Gete के राजा के प्राक्र मणों का वर्णन है) जिनको मेरे गुरु ने बड़े परिश्रम से पढ़ा और फिर मैंने उन्हीं के द्वारा तथ्य की सम्पुष्टि उन के सम्प्रदाय के बड़े अधिकारी अथवा श्री पूज्यजी, उनके पुस्तकाधिकारियों और प्रिय शिष्यों द्वारा कराई, जिनको इस विषय का पूरा ज्ञान था और वे इस उलझे हए लेखन-प्रकार की कुजी भी जानते थे, यद्यपि चौकोर अक्षर के विषय में वे भी संदिग्ध थे, क्योंकि उसका औरों से साम्य नहीं बैठता था।
अब हम पुल को पार करके घाटी अथवा दोनों पहाड़ियों के बीच में हो कर अपनी यात्रा चाल करें। सदा कल्पनाशील हिन्दुओं ने इन दोनों छोरों (सिरों) को भी, जो इस सँकड़ी घाटी के प्रवेशद्वार हैं, सशरीरता प्रदान कर दो है। अश्वमुखीदेवो (Centaur Bhynasara) ने दाँई ओर और जोगिनी माता ने बांई ओर रक्षा के लिए तथा श्रद्धाहीन व्यक्तियों को घुसने से रोकने के लिए आसन जमाया है। घाटी से सड़क, नदी के पेटे और चोटी तक वृक्षावली से ढंके पहाड़ के बीच से संकड़ा मार्ग छोड़ कर सोनारिका के बाएं किनारे-किनारे, बल खाती हुई चलती है । वृक्षों में सब से अधिक देखने योग्य सागवान है, जिसके केवल पत्ते ही बड़े-बड़े हैं और यह शायद ही अनुमान लगाया जा सकता है कि ये पत्ते ऐसे लघु और बल खाए हुए तने वाले वृक्ष के हो भी सकते हैं या क्यो ? परन्तु, इनसे किसानी काम और मकान बनाने के लिए सामग्री तो मिल ही जाती है।
पहाड़ी के सिरे पर ही जिस पहली पवित्र इमारत पर ध्यान जाता है वह दामोदर महादेव का मन्दिर है और काफी बड़ा है । यहाँ सोनारिका को रोक
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