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प्रकरण - १४; पालीताना के पुरावशेष - [३०९ की है वह बिलकुल बच्चों की सी और असन्तोषप्रद है। इस कथन से प्रभावित हो कर मैं अपनी मान्यता का बलिदान न करते हुए, यह बात अस्वीकार करने में तनिक भी संकोच न करूंगा कि वृद्ध पादलिप्त और उसके पादलेप ही, भले ही वे कितने ही चमत्कारिक रहे हों, पल्लियों (Pallis) के इस निवासस्थान के नामकरण में मूल कारण थे। पल्लियों ने सम्पूर्ण पश्चिमी भारत में विचित्र अक्षरों और नगरों के नामों के रूप में अपनी निशानियां छोड़ी हैं । मेरी यह भी धारणा है कि यह मध्य एशिया से एक महान् जाति के प्रस्थान का परिणाम है, जो अपने साथ कम से कम उन धार्मिक तत्त्वों को लेकर आई थी, जिनका यहाँ पर बौद्ध और जैन धर्मों के रूप में विकास हुआ और वे तत्त्व अधिक परिकृत रूप में उन्हीं प्रदेशों में मानवता का प्रसार करने के लिए परावृत कर दिए गये (जहाँ से कि वे आये थे)। - पालीताना में प्राचीन युगों के बहुत-से अवशेष हैं। बहुत से देवालय और धार्मिक इमारतें यद्यपि, वहाँ पर हैं, परन्तु कोई भी प्राचीन मन्दिर अथवा इमारत गॉथिक से भी गए बोते इसलामियों के हाथों नहीं बच पाई है। इमारतें अधिकतर कच्चे पत्थर की बनी हुई हैं, जिनकी सतह की पपड़ियाँ सहज ही में उखड़ जाती हैं । इससे बहुत से शिलालेख भी नष्ट हो गये हैं यद्यपि वे प्रायः सुघड़ खड़िया पत्थर अथवा भूरे पत्थर पर ही खोदे गये थे। शहर का विस्तार पहले बहुत अधिक था, गोरो बेलम की बनवाई हुई मसजिद भी पहले शहर के अन्दर हो थी, जो आजकल इसके बाहर है। परन्तु, मेरी बादशाह के भतीजे के विषय में सूचना देने वाले किसी शिलालेख की खोज व्यर्थ गई। इतिहास में हमें किसी भी ऐसे गोरीवंश का पता नहीं चलता जिसका इन प्रदेशों पर कभी राज्य रहा हो अथवा वे दिल्ली-सल्तनत के प्रतिनिधि बन कर यहां रहे हों। परन्तु, इस मसजिद तथा पालीताना के अन्य मुसलिम अवशेषों से हिन्दूस्थापत्य को कला एवं रुचि का ज्ञान अवश्य हो जाता है। यहाँ तक कि 'मम्बार' या मुल्ला के चबूतरे के दोनों ओर बने हुए तोरण भी शैव-पवित्रता को धारण किये हुए हैं।
शहर के अन्दर की ओर एक प्राचीन स्मारक अवश्य है; यह एक सार्वजनिक बावड़ो या जलाशय है जो परम्परागत कथाओं .. अनुसार सुप्रसिद्ध सदयवत्स और सावलिंगा के प्रेमी-युग्म के नाम से विख्यात है, जिनकी प्रेमगाथा हिन्दुओं की अनेक प्रणयकथाओं में से एक है। इसकी सम्पुष्टि में यदि कोई शिलालेख मिल जाता तो हम इस बावड़ी के निर्माण को कम से कम अट्ठारह शताब्दी पूर्व का अवश्य मान लेते । सदयवत्स तक्षक शालिवाहन का पुत्र था । जिसने हिन्दुस्तान के
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