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प्रकरण - १५; शत्रुजय के वृश्य
३२१ महान् कृषक जालिमसिंह ने, जो उपयोगी और कमखर्च चीजों की तलाश में कभी नहीं चूकता, इसी को नकल कर डाली है ।
अमरेली से आठ मील दूर हमने शत्रुज नदी की मुख्य शाखा को पार किया जिसका उद्गम गिरनार की दक्षिणी पहाड़ियों में है और जो इस प्रायद्वीप में मेरी देखी हुई नदियों में सब से बड़ी है। गांव तो बहुत थे, परन्तु उनमें बस्ती हल्की थी। इन गांवों में और गुजरात के गांवों में, जहां व्यापार और खेतीबाड़ी मिले हुए धन्धे हैं, रात दिन का अन्तर है। यहां अमरेली जसे कसबों को छोड़ कर कहीं व्यापार का नाम भी नहीं है। आज का रास्ता दक्षिण की ओर था, गिरनार दाएं और शत्रुञ्जय बाएं, प्रायः समान ही दूरी पर; और उनकी नीची पहाड़ियां तो प्रायः इधर-उधर थी ही। प्रात:कालीन प्रकाश में चमकती हुई मरीचिका में होकर देखने पर इनकी शोभा और भी बढ़ जाती थी जब कि उन पवित्र पर्वतों द्वारा ग्रहण की हुई तरङ्गायमान और निरन्तर परिवर्तनशील प्राकृतियां प्रांखों के सामने छाया-चित्र से उपस्थित कर रही थीं। पहले तो एक घना काला स्तम्भ गिरनार पर्वत पर टिका हुआ दिखाई दिया, फिर वह धीरे-धीरे प्रादिनाथ के निवास शत्रुजय तक फैलता चला गया। यह एक मोटी, स्पष्ट दौड़ती हई-सी रेखा थी जो प्रायः दृष्टिवृत्त की प्राधी परिधि में लिपट-सी गई थी। इस घोर अन्धकारपूर्ण वाष्प-समूह ने तुरन्त ही दोनों पर्वतों के बीच की जगह को भर दिया; यह दृश्य उत्तर की ओर के पारदर्शक माध्यम से सर्वथा भिन्न था जिसमें होकर अमरेली की मीनारें स्पष्ट दिखाई दे रही थीं; इस दर्पण में प्रतिबिम्बित होकर उनको ऊंचाई, नीची स्थिति होने पर भी, बहुत बढ़ी हुई सी लगती थी और ऐसा प्रतीत होता था मानो वे सुदूर सिहोर के पर्वत-शृंगों से जा मिली हैं। शत्रुञ्जय का दृश्य प्रतिक्षण बदल रहा था । एक काली, भद्दी और विषम किनारों वाली प्राकृति से यह स्तम्भाकार बन गया, फिर अपनी मूल प्राकृति में बदल गया और कुछ ही क्षणों में दूसरा वेश ग्रहण कर लिया-एक विशाल पर्वत-खण्ड, जिसकी बगलें स्पष्ट टूटी हुई, नीची संयोजक श्रेणी के कुछ भाग ऊँचे उठ गये और बड़ा तथा ऊँचा खण्ड दब गया । सब से अधिक आकर्षक दश्य तो उस समय उपस्थित हुआ जब कि समुद्र-तल से उठ कर सर्य की ऊर्ध्वगामी किरणों ने पर्वत के समस्त विस्तार को आलोकित कर दियाऐसा प्रतीत हा मानो अन्तरिक्षीय अन्धकार में तरल अग्नि की एक झील लहरें ले रही हो । धीरे-धीरे प्रकाश ने धुंध पर विजय प्राप्त की और इसके मण्डल ने अपना ऊपरी छोर पर्वत के समतल भाग से भी ऊपर जा टिकाया, जो प्रत्यक्ष हो अंधेरी रात में तोप का झपाका-जैसा मालूम पड़ रहा था। ज्यों-ज्यों
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