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पश्चिमी भारत की यात्रा भाइयों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु-कथा सुनने के बाद प्रणहिलवाड़ा के प्रत्येक श्वास में प्रतिहिंसा जाग उठी थी। "जब चालुक्य भीम और उसके योद्धाओं ने सारंगदेव के पुत्रों के दुर्भाग्य का हाल सुना तो उनकी क्रोधाग्नि भड़क उठी।" चालुक्य के आत्मीय जनों की हत्या को कारण मानते हुए चौहान के पास पत्र द्वारा युद्ध का सन्देश भेजा गया जिसका संक्षेप में यही उत्तर प्राप्त हुआ कि "सोमेश तुमसे युद्ध में भेंट करेगा।"
युद्ध के कारणों की साधारण रूपरेखा ऊपर दी गई है। अगले 'समय' अर्थात उनहत्तर पोथियों के ग्रन्थ के अगले भाग में दोनों ओर से युद्ध की तैयारियों का विस्तृत वर्णन किया गया है । इसी में हमें उन वंशों और जातियों के नाम तथा उनके मुखियाओं का परिचय प्राप्त होता है, जो उन दोनों प्रतिस्पद्धियों के झण्डों के नीचे एकत्रित हुए थे। ___"गुर्जर देश में चालुक्य भोम राज्य करता है, जो पाण्डव भीम के समान है। उसकी कीर्ति और राजनीति का बखान शब्दों में नहीं हो सकता । परन्तु, सांभर का सोमेश उसके हृदय में काँटे की तरह चुभता रहता था; उसे न दिन में चैन था न रात में।"
इसके पश्चात् उसके सामन्तों के नाम एकत्रित होने की घोषणा जारी होती है। प्रागमन के अनन्तर उनमें से कितनों ही ने दरबार में उपस्थित होकर भाषण भी दिए। ___ झालापति राणिङ्गदेव ने चालुक्यों के इन्द' से इस प्रकार कहा 'यदि आप इस क्रोधाग्नि से ही सन्तप्त हैं तो देश की सेना एकत्रित कीजिए जिससे हम पवन के वेग से शत्रु पर टूट पड़ें; जैसे भील मधु के छत्ते को तोड़ लेता है उसी प्रकार हम संभरी' को लूट लेंगे।" फिर, कन्ह, काठी नरिंद महाबली राणिंग राजभान, देवपति योद्धा धवलाङ्ग, धवलरा (Dholara), सुरतान और जिसके शरीर पर असंख्य घाव थे उस जूनागढ तातार के साथ मकवाणा सरदार सारंग भी बोले। तदनन्तर अपने परामर्शदाता मुख्य सामन्तों के बीच में चालुक्यराज ने
"जब तुम मांगो वर वर, तब हम बेर सु देह" ।।५६।। २ 'इन्द्र' का संक्षिप्त रूप जिसका अर्थ राजा या स्वामी होता है। 3 'सांभर' को बिगाड़ कर 'संभरी' कहा गया है-शायद अपमान करने के लिए।
इस उपाधि से प्राचीन देव और सोमनाथ के राजाओं की पहचान होती है, जो अब प्रण__हिलवाड़ा के करद सामन्त थे। ५ इससे इस राज्य में मुसलिम प्रभाव का सूचन होता है कि प्रायद्वीप के बीचों-बीच महत्वपूर्ण गढ़ उनके अधिकार में था।
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