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प्रकरण - १०० अहिलवाड़ा का व्यापार
[ २३१ सीथिक लोग डेल्टा के ठट्ठ (Tatta) अथवा सामीनगर (Saminagur), मीनागढ़ (Minagara) पर बस गये थे और दूसरे (हूण) कुछ ऊपर की ओर जम गए थे। . पूर्व विस्फोट का समय यूति (Yuti) अथवा जीत (Gete) अभियान का समय था जिसका वर्णन मैंने यादवों के इतिहास में किया है। इन प्रदेशों में अब तक अत्यधिक संख्या में प्राप्त होने वाले अस्पष्ट अक्षरों से युक्त बहुत से प्राचीन पदक एवं चट्टानों पर उत्कीर्ण लेखों को इन्हीं इण्डो-पार्थिक अथवा इण्डोगेटिक आक्रमणकारियों से सम्बद्ध मानना चाहिए। अन्य बहुमूल्य पत्थरों को तरह गोमेदक और सुलेमानी पत्थर गुजरात में राजपीपली नामक स्थान पर पाया जाता है। मेरे पास सिन्धिया के डेरे पर खरीदा हा एक फलदान है, जो स्पष्ट ही यूनानी (Grecian) कारीगरी का है। पंजाब में इकट्ठ किए हुए बहुत से गोमेदक पत्थर' जिन पर नक्काशी का काम हो रहा है तथा सिकन्दर को विजय के अन्य बहुत से ऐसे अवशिष्ट पदार्थ भी हैं जिन से प्रतीत होता है कि ऐसी चीजें उस समय प्रभूत मात्रा में यहां पर मौजूद थीं।
भाँति भाँति के रेशम के कपड़े भी एरिअन द्वारा निर्यात के मुख्य पदार्थों में गिनाए गए हैं और 'चरित्र' में लिखा है कि पट्टण के 'चौरासी बाजारों में से एक बाजार इन्हीं के लिए था। इसमें सन्देह नहीं कि पश्चिमी भारत के इस महान व्यवसाय-केन्द्र में रेशमी कपड़े का व्यापार समीपवर्ती तगर (Tagara)
सागर में होते हुए प्रबीसीनिया, सुकॉत्रा, फारस की खाड़ी; पश्चिमी भारत और लंका की यात्राएं की थीं। यह पुस्तक प्रलॅक्जण्ड्रिया में लिखी गई थी। इसकी दो हस्त-प्रतियां अब भी उपलब्ध हैं। पहली ८वीं शताब्दी की प्रति पोप की वेटिकन (Vatican) लाइ. ब्रेरी में है और दूसरी इटली में टस्कनी के ड्यूक के मॅडिशिअन (Medicean) पुस्तकालय में है जो १०वीं शताब्दी की है। इस प्रति का अंतिम पत्र प्राप्त है।
E. B Vol. VI; pp. 445-46 ' देखिए 'राजस्थान का इतिहास' जिल्ब २, पृ. २२१ ।। । जब १८०३.४ ई० में लॉर्ड लेक ने Altars of Alexander (मालटसं माफ प्रलक्जेण्डर)
से होल्कर के साथ सन्धि की तो ऐसे पत्थर इतनी मात्रा में पाए गए कि मथुरा और आगरा के देशी कारीगर कुछ समय तक सफलतापूर्वक उनसे नकली नगीने बनाते रहे और यदि उन्हें प्रोत्साहन मिलता तो बहुत प्रसिद्धि हो जाती। मेरे मित्र कैम्पशाट (Kempshot) के एडवर्ड ब्लण्ट (Edward Blunt) के पास एक विशुद्ध प्रेसियन नमूना है जिसमें कारीगर ने गोमेवक की काली पतली झिल्ली से लाभ उठाकर एक सुन्दरी के मुख की स्पर्धा में पत्थर के सफेद हिस्से में काटकर एक हब्शी (Moor) का शिरोभाग बना दिया है।
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