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प्रकरण - १२; मही नदी का संकटमय मार्ग [ २५७ सिपाहियों' (Skinner's soldiers) के लिए तो यह दोहरा अपराध होता क्योंकि वे जानते थे कि उनसे किस बात की प्राशा की जा रही थी। परन्तु, जब में यह
और कहँ कि नदी की चौड़ाई दो सौ गज के लगभग थी, गहराई बहुत थी और पानी कम से कम पाँच मील प्रति घण्टे की गति से बह रहा था, तो उनका यह सव कार्य प्रशंसा के योग्य ही समझा जाना चाहिए । उस शान्त, निर्भय वृद्ध ने अविचल रह कर वीरता दिखाई और यह सब क्रिया किसी भागदौड़ या हड़बड़ाहट के बिना पूर्ण शान्ति के साथ पूरी हो गई। डेरे पर पहुंचने पर मुझे मालूम हुआ कि एक सईस गायब था; तैरना न जानने के कारण उसने मेरे उत्तम 'हय-राज' (Hae-raj) को अपने सहायक को सम्हला दिया था। जब शाम हो गई और वह दिखाई न पड़ा तो नदी में उसके लिए व्यर्थ खोज की गईयह मालूम हुआ कि जब प्रायः सब लोग उतर चुके थे तो किसी ने उसे नदी में कूदते हुए देखा था-मानों, वह उसे पार कर जायगा-परन्तु, यह उसका पागलपन था, विशेषतः इसलिए कि वह प्रतीक्षा करता और फिर नाव में पार उतर जाता। बेचारे सईस के दुर्भाग्य ने इस प्रदेश की पुरानी कहावत को चरितार्थ कर दिया 'उतरा मही, हुआ सही', यद्यपि यह कहावत अन्य आपत्तियों के विषय में प्रयुक्त होती है, जो उन जातियों की लुटारू एवं गैर-कानूनी आदतों के कारण उत्पन्न होती हैं, जो इस नदी के किनारे-किनारे इसके उद्गमस्थल विन्ध्य की पहाड़ियों से कच्छ की खाड़ी तक दस मील की दूरी में बसी हुई हैं। इसके तट अथवा निकट बसी हुई एक जाति का नाम माहीर (Mahyeer) है, जो आदिवासी गौंड़ों की ही एक शाखा है। एक दूसरी जाति माँकड (Mankur) कहलाती है, परंतु उनकी आदतें और रहन-सहन भी वैसा ही है; उनमें वे सभी भेदभाव और पक्षपात मौजूद हैं जो दुराराध्य एवं उच्चजातीय ब्राह्मणों में होते हैं और जिनके कारण वे अपने-आप को ऊँचा समझते हैं, जैसे-अन्य जातीय हिन्दू अथवा मुसलमान का स्पर्श उन्हें अपवित्र कर देता है और उसके लिए प्रायश्चित्त अनिवार्य हो जाता है। वे संस्कृत-भाषी ब्राह्मण और तुर्क दोनों ही को समान रूप से अपने से भिन्न मानते हैं । उनमें यह एक मौलिक गुण है। मिही अथवा मही नदी के बहुत से नामों में से एक पापासिनी (Papasini) अथवा पाप की नदी भी है; दूसरा नाम 'कृष्ण-भद्रा' अथवा काली नदी है; इस अन्तिम नाम से ही वे सब नाम निकले होंगे जो इस खाड़ी में गिरने वाले पहर (Paddar) पर लिखे हुए हैं ।
उस गरीब सईस की याद से बेचैनी के कारण वह संध्या मेरे लिए शोकपूर्ण हो गई थी। वह बड़ा अच्छा सेवक था और कितने ही वर्षों से मेरे साथ था।
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