________________
प्रकरण - ११, अहिलवाड़ा के भग्नावशेष
[२३७
अहिलवाड़ा पर राज्य करने वाले तीनों राजवंशों के अब केवल तीन ही स्मारक अवशिष्ट हैं; परन्तु, 'चरित्र' और अनुश्रुतियों के आधार पर इस राज्य के भूतपूर्व गौरव के पर्याप्त प्रमाण मिल जाते हैं। प्रथम, काली की छतरियाँ; द्वितीय, सिद्धराज के प्राचीन महलों के अवशेष ; तृतीय, चौरासी बाज़ारों में से एक घी की मण्डी के खण्डहर, जो छतरियों से चार मील दूर हैं, और अंतिम परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण, अहिलवाड़ा के खण्डहर, जो कालीकोट-द्वार से दो कोस अथवा तीन मील की दूरी पर हैं ।
इस शोध के पश्चात कई वर्षों की चिन्ता दूर हुई; यहीं पर वंशराज [वनराज] के प्रथम नगर की स्थिति थी, जैसा कि अब भी यहाँ के लोग कहते हैं; परन्तु, कुछ ही वर्षों बाद यह अतीत की वस्तुओं में गिना जायगा । कालीकोट को नष्ट करने में काल ने अथवा तुर्कों ने जो कुछ किया उससे भी अधिक नष्ट करने का दायित्व दामाजी गायकवाड़ का है; परन्तु, इसमें सन्देह भी हो सकता है क्योंकि यह सब जानते हैं कि खुन के प्यासे अल्ला' ने दीवारों को तोड़ कर ही दम नहीं ले लिया था वरन् मन्दिरों को बहुत-सा भाग नीवों में गड़वा दिया, महल खड़े किये और अपनी विजय के अन्तिम चिह्नस्वरूप उन स्थलों पर गधों से हल चलवा दिया, जहाँ वे मन्दिर खड़े थे। अब, सब वीरान है और केवल रेत में पनपनेवाला सदा-हरा पीलू ही बल्हरों के अवशेषों की शोभा बढ़ा रहा है । काली-कोट आस-पास के प्रदेश से बहुत ऊँचा खड़ा किया गया था। आजकल जिसको सिद्धराज के महल का खण्डहर कहा जाता है वह एक कृत्रिम
' अल्लाउद्दीन ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org