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प्रकरण -५; देलवाड़ा की यात्रा
[१०१ "सूर्य को दण्ड देने के लिए उसकी ओर बाण चलाए थे ।" अन्त में, दोनों ही भोर से बहुत कुछ अाग्रह के साथ हम विदा हुए-उनकी ओर से यह प्राग्रह था कि मैं उन्हें कभी न भूलूं और अपने स्वास्थ्य के विषय में, जिसका उनको बहुत खयाल था, उपेक्षा न करूं'; मेरा कहना यही था कि वे अपने निज के प्रति सच्चे रहें। इसके पश्चात् सभी उपस्थित लोगों ने एक साथ गंभीर स्वर से मेरा अभिवादन किया। उनका यह परम हार्दिक स्वर झांक एवं ढोलक के वाद्य से प्रबल हो उठा था। जब राव और उनके सामन्तगण आबू के ढाल पर उतर गए तो में भी अचलेश के मन्दिर पर अन्तिम बार दृष्टिनिक्षेप करने एवं अपने मित्र महन्तजी से मिलने के लिए लौट पड़ा क्योंकि उनके चेलों में अब मेरी भी गिनती हो चुकी थी। मैंने प्रौपचारिक द्रव्य गोसाईंजी को भेंट किया।
अग्निकुण्ड और आस-पास के मनोरञ्जक पदार्थों को देखते-देखते देलवाड़ा के लिए रवाना होने में तीसरे पहर बहुत देर हो गई थी और वहाँ तक मैं शाम होने पर भी न पहुँच सका। रास्ते में नीचे की ओर लगातार ऊँचे-नीचे स्थल थे और अचलगढ़ के बादलों में जुकाम लग जाने के कारण मेरी तबीयत बहुत नरम थी इसलिए मुझे सहायता के लिए 'स्वर्ग-वाहन' का सहारा लेना पड़ा। यात्रा समाप्त होते-होते हमें एक झील का चक्कर काटना पड़ा जिसके किनारों पर कनेर और सफेद गुलाब के फूलों को बहुतायत थी। उधर, एक सघन पीपल के पेड़ पर बैठी हई कमेडी' के एकाकी परन्तु मोहक स्वर से उस सुन्दर दृश्यावली की स्तब्धता मुखरित हो उठी थी जब कि अस्तोन्मुख सूर्य की रक्तिम रश्मियाँ आसपास की सघन वनावली को रञ्जित कर रही थीं।
रात एक मन्दिर के पास खण्डहर में कटी, और जब मैं अपने घास के बिछौने पर से उठा तो मुझे बहुत तेज़ बुखार था- इतना तेज कि मैं बोल भी नहीं सकता था; मेरे मस्तिष्क की थकान ने शरीर को बहुत ज्यादा थका दिया था; परन्तु, काम अभी बहुत बाकी था क्योंकि यह पवित्र स्थान कितने ही पाश्चर्यों का केन्द्र था। मुझे उन मन्दिरों को देखना ही था जिनका उल्लेख पादरी [बिशप हंबर ने किया था और जिनके विषय में उसने कलकत्ते में रहने वाले मेरे एक मित्र के साथ हुए पत्र-व्यवहार के आधार पर सुन-सुना रखा थाउस मित्र ने उन बातों को दश वर्ष पूर्व एक पत्रिका में छपवा भी दिया था। यह खोज मेरी अपनी थी; आबू के सही स्थान और नाम का पता सबसे पहले मैंने
'कमेडी का नाम प्रेम के देवता 'काम' से निकला है, जिसके सभी चिह्न सार्थक है-धनुष,
चमेली. गलाब और अन्य फलों के बाण, जिनमें हिन्द्र कवि कण्टक को स्थान नहीं देता है।
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