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प्रकरण - ६; प्रणहिलपुर के सोलंकी राजा [१७६ मूलराज अणहिलवाड़ा की गद्दी पर संवत् ६८८ (९३२ ई०)' में बैठा । चावड़ा वंश के संस्थापक के समान उसका राज्यकाल भी बहुत लम्बा था अर्थात् छप्पन वर्ष; और यदि हम पूर्ववणित 'प्रकीर्ण संग्रह' को सही मानलें तो यह दो वर्ष और भी बढ़ जायगा । उसने अपने शस्त्र लेकर पश्चिम की ओर कूच किया और सिन्धु की घाटी तक पहुँच कर वहाँ के राजपूत राजा से युद्ध किया; उसी ने रुद्रमाला मन्दिर की नींव रखी थी, जिसका हम अन्यत्र वर्णन कर चुके हैं।
चाउण्ड अथवा चामुण्डराय (जिसको अबुल फजल ने भूल से जामुण्ड लिखा है) संवत् १०४४ (६८८ ई०) में सिंहासनारूढ हुअा। उसने केवल तेरह वर्ष राज्य किया और उसके शासनकाल का अन्त उसके स्वयं के लिए एवं सम्पूर्ण भारत के लिए घटनापूर्ण सिद्ध हुआ। संवत् १०६४ अथवा १००८ ई० (मुसलमान इतिहासकारों के मतानुसार सन् ४१६ हिजरी अर्थात् १०२५ ई०) में ही गज़नी के बादशाह महमूद ने अणहिलवाड़ा पर आक्रमण किया था; उसने यहाँ की चारदीवारी को ध्वस्त करके मन्दिरों के ईंट-पत्थरों से नगर के चारों ओर की खाई को पाट दिया था। छः मास तक पाटण में विश्राम करने के बाद विजेता ने प्राचीन शासकों के एक वंशज को ढूंढ कर गद्दी पर बिठा दिया जिसका गँवारू-सा नाम दाबिशलीम (Dabschelim) था। उसको देव और सोमनाथ के राजा का पुत्र बतलाया जाता है, जो स्पष्टत: चावड़ा वंश का था। शिलालेखों के अनुसार, जो मुझे प्राप्त हुए हैं, इन लोगों की वंशपरम्परागत सम्पत्ति अणहिलवाडा में बारहवीं और चौदहवीं शताब्दी तक मौजूद थी। फरिश्ता के मेरे वाले संस्करण में इस (राजा) को 'मोर ताज' [मोरधज या मोरध्वज ?) उपाधियुक्त बॅबशेलीम कहा गया है, जिसका शुद्ध रूप इतिहास में वर्णित बल्लिराय अथवा बल्लभसेन हो सकता है, जो चामुण्ड के बाद गद्दी पर बैठा था; और, क्योंकि इस आधार के अनुसार उसका राज्यकाल केवल छ: मास ही बताया गया है, यह अनधिकारी दाबिशलीम के अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकता । 'मोर ताज' की पदवी उभयभाषात्मक है, जिसका अर्थ
' मूलराज संवत् ६८८ में नहीं, ६६८ में गद्दी पर बैठा था। क. टॉड दस वर्ष की भूल कर रहे हैं । 'कुमारपाल रास' में भी, जिसके आधार पर टॉड यह वृत्तान्त लिख रहे हैं, मूलराज के राज्यारोहण का समय ६६८ संवत् ही लिखा है--
'संवत् नव अट्ठाणुं ज सई, मूलराज राजा थयो तसई ।।७५॥ पृ० १० • अबुलफज़ल ने इस नाम का अपनी प्रोर से भी रूपान्तर कर दिया है जिसको पाईन-ए
अकबरी के अनुवादक ने बेसिर (Bcysir) लिखा है और डो' हरबोलॉट (D' Herbelat) ने अरबियों का अनुसरण करते हुए इसको Dabschlimat जाति का लिखा है।
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