________________
प्रकरण - ६; वसिष्ठ का श्राश्रम
[ ११e चलकर परमारों की वंश-परम्परा में आरूढ हुई । इन शिलालेखों में प्रथम देवड़ा के किए हुए पट्टे उद्धृत हैं, जिनमें उसने अपने पूर्ववत्तियों द्वारा प्रदत्त भूमि एवं अधिकारों को स्वदत्त विशेष दान के साथ चालू ( बहाल ) रखा है।
चौक के दाहिने सिरे पर हिन्दुओं के प्लूटो ( Pluto) देवता, पातालेश्वर का छोटा-सा मन्दिर है जो धरातल से कुछ सीढ़ियां नीचा है; इस देवता के निवास की पैशाचिक गम्भीरता से युक्त कोई भी प्राकर्षण की वस्तु मन्दिर में नहीं थी, केवल कुछ उपदेवों की छोटी मूर्तियों के साथ पातालेश्वर की मूर्ति एकाकी दीपक के मन्द प्रकाश में दिखाई पड़ रही थी ।
एक वेदी पर जिस पर आसमान की ही छत है, कितनी ही देवमूर्तियां विराजमान हैं जिनका ऐहिक निवास स्थान नष्ट हो चुका है। इनमें से यमुना के नाथ श्याम की मूर्ति बहुत सुन्दर बनी हुई है; इसी प्रकार के दो खम्भे भी हैं; इनकी ऊँचाई दो-दो फीट है और ये कितने ही विभागों में बँटे हुए हैं, जिनमें देवताओं की उभरी हुई मूर्तियां बनी हुई हैं । यदि ये सिलेनी Sileni ' की भांति के होते तो इन्हें सर्वोत्कृष्ट कहा जा सकता था। चौक के मध्य में दो पौराणिक मूर्तियां और हैं, जो हिमाचल के पुत्र, नन्दिवर्द्धन एवं उसके मित्र सर्प की बनाई जाती हैं । यह वही सर्प है जिस पर वह बैठा हुआ है और जिसने, आपको याद होगा, इन्द्र के वज्र की चोट से बने हुए गड्ढे को भरने के लिए हिमालय के वंशज को प्रेरित किया था । इसके पास ही कुछ सतियों के स्मारक स्तम्भ हैं जिन पर बढ़िया कुराई का काम हो रहा है और जो चन्द्रावती के ध्वंसावशेषों से लाए गए हैं ।
प्राचीन मुनि वसिष्ठ के श्राश्रम में जो कुछ देखने योग्य था वह सब देखभाल कर मैं अपने डेरे में लौटा। उस समय शारीरिक एवं मानसिक उत्साह के साथ में पूरे सोलह घंटे व्यतीत कर चुका था और अब ज्वर, सर्दी एवं थकान के कारण पस्त था । यद्यपि हरी चाय का एक प्याला उस समय अमृत के समान लगा था परन्तु वह मेरी चेतना को विस्मृति में न धकेल सका । श्राबू की सम्पूर्ण प्रकृति में कोई बदल दिखाई नहीं देता था; तेज़ हवा प्रत्येक घाटी से ऊँचे-ऊँचे वृक्षों अथवा हज़ारों झण्डों के समान लहराते हुए केले के पत्तों को स्पर्श करती हुई आ रही थी, जिसमें निरन्तर बदले हुए जलप्रपातों का एकान्त
" ग्रीक पौराणिक गाथा के अनुसार पर्वतों और वनों का देवता जो डायोनीसस ( ई०पू० ४३० - ३६७) का मित्र और अध्यापक था ।
-The Oxford Companion to English Literature, p. 724.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org