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पश्चिमी भारत की यात्रा की पादुकाएँ हैं। इस अँधेरे स्थान पर इसी सम्प्रदाय का एक चेला रहता है जो किसी विदेशी के आगमन पर घण्टा बजाने लगता है और उस नाद को तब तक बन्द नहीं करता जब तक भेंट नहीं चढ़ाई जाती। महात्मा के चरणों के चारों ओर यात्रियों के डण्डों का ढेर लगा हुआ था जो इस बात का सूचक था कि उन्होंने यात्रा निर्विघ्नतापूर्वक समाप्त कर ली थी। पर्वत पर कई जगह बहुत सी गुफाएं देखने को मिली जो प्रागैतिहासिक काल की आबादी का सूचन कर रही थीं और कई जगह बहुत से गोल-गोल छेद थे जिनकी तोप के गोले से टूट कर बने हुए छिद्रों से तुलना की जा सकती है। रोशनी. और अँधेरे के उस संघर्ष के अन्त की मैं धीरज के साथ बाट देखता रहा और उस सन्यासी से बातें करता रहा। उसने मुझे बताया कि बरसात में जब वातावरण का धुंधलापन पूरी तरह से दूर हो जाता है तो यहाँ से जोधपुर का राज-दुर्ग और लूनी पर स्थित बालोतरा तक का रेतीला मैदान साफ दिखाई पड़ता है। इस कथन की जाँच करने में कुछ समय लगा, यद्यपि बीच-बीच में जब कभी सूर्य निकलता तो हम सिरोही तक फैली हुई भीतरिल (Bheetril) नाम की घाटी और पूर्व में लगभग २० मील की दूरी पर बादलों से ढकी हुई अरावली की चोटियों में सुप्रसिद्ध अम्बा भवानी के मन्दिर को देख कर पहचान सकते थे। अन्त में, सूर्य अपने पूर्ण प्रकाश के साथ निकल आया और हमारी दृष्टि काले बादलों का पीछा करती हुई वहाँ तक दौड़ी चली गई जहाँ नीले आकाश और धुंधली सूखी बालू के मिलन में वह खो गयी। दृश्य में प्रौढ़ता लाने के लिए जो कुछ
आवश्यक था वह सब मौजूद था और निस्तब्धता उसके आकर्षण को और भी बढ़ा रही थी। यदि इस विस्तृत और अथाह गड्ढे से दृष्टि को थोड़ी-सी दाहिनी ओर घुमायी जाय तो वह परमारों के किले के अवशेषों पर जा टिकेगी जिसको धुंधली दीवारें अब सूर्य की किरणों को प्रतिबिम्बित करने में अशक्य हो गई हैं; एक हल्का-सा खजूर का पेड़, मानो उनके पतन का उपहास करता हुमा अपने ध्वज जैसे पत्तों को उस जाति के दरबार-चौक में खड़ा हुआ खड़खड़ा रहा था जो कभी अपने वैभव को चिरस्थायी समझे हुए थी। इससे थोड़ी हो दाहिनी ओर घने जंगल को पीछे लिए हुए देलवाड़ा की गुम्बदों का समूह खड़ा हुआ है जिसके पीछे की ओर जहाँ-तहां सभी तरफ छतरियों के कलश दिखाई पड़ते हैं, जो पठार की चोटी पर निकली हुई सुइयों जैसे मालूम होते हैं । इस पठार के धरातल पर बहुत से पतले झरने भी वहते हुए दृष्टिगोचर होते हैं जो सामने ही पहाड़ की ऊबड़-खाबड़ धरती पर अपने टेढ़े-मेढ़े मार्ग का अवलम्बन करते हैं। सभी में विपरीतता थी - नीला प्राकाश और रेतीला मैदान, संगमर
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