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प्रकरण - २; बनास
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छोटे-छोटे झरने इसमें आकर मिल जाते हैं और उनका छिछला किन्तु स्वच्छ पानी इसके कंकरीले पेटे में आकर समा जाता है। इस 'पर्वत और झरने के स्वामी', राजपूत, पोशाक और बाहरी चाल ढाल में तो, 'गालों' (Gaul) से मिलते जुलते हैं ही. परंतु विचित्रतापूर्ण प्राचीन उपाख्यानों को लेकर तो यह समानता और भी आगे बढ़ जाती है जिनमें उनकी कल्पनाएं यहां को प्रत्येक दृश्य वस्तु को तद्रूपता को सिद्ध करती हैं । दुर्भाग्य से मैं एक ही प्राचीन सुन्दर उपाख्यान अपनी स्मृति में रख पाया हूँ जो इस अरावली की वनदेवो (नाइड-Naiad) के अधिक पौराणिक नाम वनासि से सम्बद्ध है । इसका सारांश यह है कि यह (नदी) एक पवित्र गडेरिन थी जो किसी समय इस प्राकृतिक झरने में आनंद कर रही थी। तभी किसी मनुष्य को अपनी ओर देखते हुए लक्ष्य कर के वह डर गई। वह मनुष्य अनजान म्यूसीडोरी के प्रेमी की भांति मदुता से कह सकता था
'स्नान करती रहो, प्रेम की दृष्टि के अतिरिक्त तुम्हें कोई नहीं देख सकर्ता।'
परंतु वह अतिक्रांता लेखनकला से पूर्णतया अनभिज्ञ था अतः उसे तो | अपनी बात कहने के लिए] साक्षात् ही आगे आना पड़ा। अस्तु, कुछ भी हो, उस (गडेरिन) ने झरने को देवता से अपने को उस दर्शक की दृष्टि से छुपा लेने की प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना स्वीकार हुई और तुरंत ही पानी ने ऊँचे चढ कर भीलनी को ढक लिया जो वहीं स्वच्छ जल को नदी वनासि के रूप में बदल गई। वनासि-'वन की प्राशा', यह इस नदी के लिए बहुत ही उपयुक्त नाम है क्योंकि यह इस चट्टानों से घिरे जनस्थान के जीवन और आत्मा के समान है। इसके कुटिल प्रवाह के सहारे मेरे द्वारा अनुसन्धित उद्गम से चारुमती (चम्बल के पौराणिक नाम चर्मण्वती ?) के नरप्रपात संगम तक आगे का मार्ग भी कम चित्ताकर्षक नहीं है, और यदि यह स्थान मुगम्य होता तो मैं पाठकों को इसके किनारे-किनारे पूरे तीन सौ मील की सैर के लिए अवश्य आमंत्रित करता। उपाख्यान में कहा गया है कि घनी वनस्पति और चट्टानों से घिरे हए एक परम रमणीय एकांत स्थान में, इसके मैदान में पहुंचने से पहले ही, कभो-कभी एक
१ प्राचीन फ्रांस निवासी जाति । २ प्राचीन ग्रीक गाथाओं में वर्णित नदी झरनों की देवी। यहाँ 'वनदेवी' शब्द में वन का अथ जल लेना चाहिए। 'पयः कीलालममृतं जीवनं भुवनं वनम्'-अमर०
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