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पश्चिमी भारत की यात्रा हाथ' पानी के ऊपर दिखाई पड़ता है । फिर, यह (नदी) हमें नाथद्वारा में कन्हैया के मंदिर के आसपास इठलाती हुई परंतु 'राधा के प्रेमो' के पवित्र ध्वज तक पहुँचने के लिए विफल प्रयास करती हुई मिलतो है; उसकी (राधा की) आज्ञा से अथवा प्रतिस्पर्धिनी गोपियों की करतूत से एक चट्टान की रोक बीच में आ पड़ती है और 'अरावलो की प्राशा' अपने यमना-तट के प्रेमो विष्णु के प्रति किए हुए प्रयत्नों में विफल होकर पठार की वनदेवी अथवा जलदेवी की संगति प्राप्त करने के लिए मेवाड़ के मैदान में होकर आगे दौड़ पड़ती है। दूसरी इसी नाम की धारा इसी ऊँचे स्थान से निकल कर पहाड़ के पश्चिमी ढाल से रास्ता पकड़ कर आबू की पूर्वीय तलहटी में दौड़ जाती है और वहाँ से पूर्वप्रसिद्ध चन्द्रावती नगरी और कोलीवाड़ा के जङ्गलों को पार करती हुई अन्त में कच्छ की खाड़ी के सिरे पर खारो रन में जा मिलती है।
जन ४ थी; नले में डेरा ; सुबह के १० बजे थर्मामीटर ८६° व बैरोमीटर २८°१२' पर था। दिन के १ बजे थर्मामीटर ६३° और बैरॉमीटर २८६' तथा शाम को ६ बजे थर्मामीटर ६२° और बैरोमीटर २८° पर था। आज सुबह हमने अपनी यात्रा अरावली की पश्चिमी ढाल पर शुरू की जो 'मृत्यु देश' अर्थात् मरु के रेतीले मैदानों में उतरती है । जहाँ उतार शुरू होता है वहाँ से, जब तक हम पहाड़ियों को पार न कर गए, नाळ', जिसमें मोड़ बहुत कम या नहीं के बराबर हैं, पूरी बाईस मील लम्बी है और कुम्भलमेर वाली उस नाळ से बीस गुनी कठिन है जिसके द्वारा गत वर्ष हमने मारवाड़ में प्रवेश किया था, परंतु
• ' मैंने (राजस्थान) के 'इतिहास' में कुम्भलमेर की यात्रा के प्रसङ्ग में इस स्थान का वर्णन
किया है, गाथा कहती है कि प्रायः झरने की देवी का हाथ पानी के ऊपर दिलाई दिया करता था, परन्तु अब एक असभ्य तुर्क ने उस हाथ पर पवित्र गाय के मांस का टुकड़ा फेंक दिया तब से वह नहीं दिखाई पड़ता। २ Drvad ग्रीक पौराणिक देवी जो वृक्षों की स्वामिनी मानी जाती थी। Naiad नदी
और झरनों की देवता । (S. N. E., p. 915) 3 'नाळा' शब्द प्राय: पहाडी भरने के अर्थ में प्रयुक्त होता है, यह नाळ (घाटी) से निकला
है क्योंकि झरना पहाड़ी प्रदेश में होकर आगे बढ़ने के लिए कोई न कोई मार्ग निकालता रहता है । 'नाळ' शब्द का अर्थ नली भी है जिससे 'नाल गोला' बना जो पुराने तरीके को हाथ-बन्दूक 'तोड़ा' के अर्थ में शाता है अर्थात् किसी भी प्रकार से नली में से फैकी हुई गोली । यह शब्द भारत के सैनिक कवियों (चारण) द्वारा एक युद्धास्त्र के लिए बहुत पहले से ही प्रयुक्त किया जा रहा है जब कि यूरोप वाले बारूद छ। प्रयोग बाद में जानने लगे हैं।
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