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पश्चिमी भारत की यात्रा प्रथम भाग की भूमिका में ग्रन्थकार ने स्पष्ट लिख दिया है कि उसका प्राशय इस विषय को इतिहास की अलंकरण-हीन शैली में बाँधने का कभी नहीं रहा है क्योंकि ऐसा करने से बहुत-से ऐसे ब्यौरे छूट जाते जो राजनीतिज्ञ और जिज्ञासु अध्येता के लिए समानरूप से लाभकारी हैं) तो भी विवरण में जो यथार्थता
और ताजगी आ गई है उससे पाठक लाभान्वित ही होता है और इसके द्वारा प्रस्तुत चित्रों में वर्णनकर्ता के चरित्र एवं गुणों का स्पष्ट पाभास मिलता है।
___ इस महान् ग्रन्थ के केवल वे ही अंश दोषरहित नहीं माने गए हैं जो मीमांसा-परक हैं-जैसे, राजपूतों की सामन्त-प्रणाली पर उसका अपूर्व निबन्ध और वे अनुच्छेद जिनमें ग्रन्थकर्ता ने पूर्व और पश्चिम के रीतिरिवाजों, विश्वासों और व्यक्तियों के ऐक्य एवं समानता की मान्यता का पूर्व-संस्थापन करने के प्रति शब्द-साम्य के ही दुर्बल आधार पर प्रत्यक्ष और अत्यधिक अभिरुचि प्रदशित की है । परन्तु, इनमें से बहुत से विचार आनुमानिक रूप में प्रस्तुत किए गए हैं यद्यपि वे सभी निर्व्याज और पापात-सत्य प्रतीत होते हैं, और वास्तव में कुछ सत्य हैं भी। मेजर विल्फोर्ड (Major Wilford) और यहां तक कि सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) के अविमृश्यकारी निष्कर्ष भी, हमारे हिन्दू-साहित्य-विषयक ज्ञान के बाल्यकाल में, मानव-मस्तिष्क की रचना के उस स्वाभाविक और आवश्यक प्रभाव से अछूते न रह सके जिसके कारण वह पूर्वाग्रह के वश होकर विपरीत दिशा में घूमने लगता है; और, ऐसे प्रमाण, जो बँक्ट्रिया के सिक्कों, अफगानिस्तान के तोपे (Topes) और हिन्दुस्थान के शिलालेखों से निष्पन्न हुए हैं और योरपोय विद्वानों की कुशाग्रबुद्धि एवं लगन से जो उनके भेद खुल कर सामने आए हैं (जिनमें से बहुत से कर्नल टॉड' के साहसिक अनुमानों को सत्य प्रमाणित करने वाले प्रतीत होते हैं) वे सब भी पूर्वीय और पश्चिमीय जातियों के मूल-सम्बन्ध-विषयक हठधर्मी के रोग का शायद ही उपचार कर सके हों, यद्यपि इनकी बोलियों में व्याकरण-सम्बन्धी समानताएं और
' जब योरपीय संग्राहकों का मुद्रा-संकलन-उद्योग भारत में बढ़ने लगा और उसके मूल्यवान्
परिणाम निकलने लगे तो कर्नल टॉड ने अपने एक मित्र को सूचना देते हुए लिखा है कि 'मुद्रा सम्बन्धी अनुसंधान बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रानन्दप्रद हुए हैं; परिमाण और मूल्य को देखते हुए उनसे मेरे सभी अनुभवों को सम्पुष्टि हुई है, जो मैं समय-समय पर प्रकट करता रहा हूं। क्या प्राप मेरे उस अनुमान को सत्यता का अनुभव करते हैं, जो मैंने रोम से लिखे हुए पत्र में व्यक्त किया था कि फारस की खाड़ी और मैसोपोटेमियां क्दिमन सिक्कों के घर हैं ?
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