Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 03
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् से 'डीप्' प्रत्यय होता है। कर्तरि शप्' (३।१।६८) से 'शप्' प्रत्यय, उगिदचां०' (७।१।७०) से नुम्' आगम होता है। ऐसे ही यज' धातु से 'शतृ' प्रत्यय करने पर-यजन्ती ।
डीप्
(३) वनो र च।७। प०वि०-वन: ५।१ र ११ (लुप्तप्रथमानिर्देश:) च अव्ययपदम् । अनु०-डीप् इत्यनुवर्तते। अन्वय:-वन: स्त्रियां डीप् रश्च ।
अर्थ:-वन्-अन्तात् प्रातिपदिकात् स्त्रियां डीप् प्रत्ययो भवति, रेफश्चान्तादेशो भवति ।
उदा०-धीवरी। पीवरी। शर्वरी। परलोकदृश्वरी।
आर्यभाषा: अर्थ-(वन:) वन्-अन्तवाले प्रातिपदिक से (स्त्रियाम्) स्त्रीलिङ्ग में (डीप्) डीप् प्रत्यय होता है (च) और (र:) अन्त में र-आदेश होता है।
उदा०-धीवरी। धीवर (मल्लाह) की स्त्री अथवा मछली रखने की टोकरी, मछली मारने का बर्थी। पीवरी। तरुणी। शर्वरी। रात्रि। परलोकदश्वरी । परलोक को जाननेवाली।
सिद्धि-(१) धीवरी। ध्या+क्वनिम्। धी+वन्। धीवन्। धीवर+ई। धीवरी+सु । धीवरी।
यहां 'ध्यै चिन्तायाम् (भ्वा०प०) धातु से 'ध्याप्योः सम्प्रसारणं च' (उणा० ४।११५) से क्वनिप् प्रत्यय और 'ध्या' धातु को सम्प्रसारण होता है। तत्पश्चात् 'धीवन्' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय और न्' को 'र' आदेश होता है।
(२) पीवरी। प्याय्+क्वनिप् । प्याo+वन्। पी+वन्। पीवन्+डीम्। पीवर+ई। पीवरी+सु । पीवरी।
__ यहां 'ओप्यायी वृद्धौ' (भ्वा०प०) धातु से पूर्ववत् क्वनिप्' प्रत्यय और सम्प्रसारण होता है। तत्पश्चात् 'पीवन्' प्रातिपदिक से इस सूत्र से 'डीप्' प्रत्यय होता है और न्' को र' आदेश होता है।
(३) शर्वरी । शृ+वनिप् । शर्+वन् । शर्वन्+डीप् । शर्वर+ई। शर्वरी+सु । शर्वरी।
यहां शू हिंसायाम्' (क्रया०प०) धातु से 'अन्येभ्योऽपि दृश्यन्ते (३।२।७५) से वनिप्' प्रत्यय और सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से गुण होता है। इस सूत्र से 'डीप' प्रत्यय और वन्' के न्' को 'र' आदेश होता है।
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