Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः
४३ सिद्धि-अश्लिक्षत् । यहां श्लिष् आलिङ्गने (दि०प०) धातु से परे इस सूत्र से च्लि प्रत्यय के स्थान में क्स आदेश होता है। षढो: क: सि' (८।२।४१) से श्लिष् के ष् को क् और आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से क्स के स् को षत्व होता है। क्सप्रतिषेधः
(५) न दृशः।४७। प०वि०-न अव्ययपदम्, दृश: ५।१ । अनु०-क्स इत्यनुवर्तते। अन्वय:-दृशो धातोश्च्ले: क्सो न लुङि।
अर्थ:-दृशो धातो: परस्य च्लिप्रत्ययस्य स्थाने क्स आदेशो न भवति, लुङि परतः।
उदा०-(दृश्) अदर्शत् । अद्राक्षीत् ।
आर्यभाषा-अर्थ-(दृश:) दृश् (धातो:) धातु से परे (प्ले:) च्लि प्रत्यय के स्थान में (क्स:) क्स आदेश (न) नहीं होता है (लुङि) लुङ् प्रत्यय परे होने पर।
उदा०-(दृश्) अदर्शत् । अद्राक्षीत् । उसने देखा।
सिद्धि-(१) अदर्शत् । दृश्+लुङ् । अट्+दृश्+च्लि+ल। अ+दृश्+अड्+तिम् । अ+दर्श+अ+त् । अदर्शत्।
यहां 'दशिर् प्रेक्षणे' (भ्वा०प०) धातु से परे इस सूत्र से चिल' प्रत्यय के स्थान में 'क्स' आदेश का निषेध हो जाने से 'इरितो वा' (३।११५७) से 'अङ्' ओदश होता है। 'ऋदृशोऽङि गुणः' (७।४।१६) से दृश्’ को गुण हो जाता है।
(२) अद्राक्षीत् । दृश्+लुङ्। अट्+दृश्+च्लि+ल। अ+दृश्+सिच्+तिम्। अ+दृ अम् श्+स्+इट्+त् । अन्द् र् अ श्+स्+ई+त्। अ+दर् आ ष्+स्+ई+त्। अद्राक्+ष्+ई+त्। अद्राक्षीत्।
यहां दृशिर् प्रेक्षणे (भ्वा०प०) धातु से परे इस सूत्र से चिल' प्रत्यय के स्थान में क्स' आदेश का निषेध हो जाने से इरितो वा' (३।११५७) से विकल्प पक्ष में च्ले: सिच्' (३।१।४४) से 'सिच्’ आदेश होता है। सृजिदृशोझल्यमकिति' (६।१।५७) से 'दृश' को 'अम्' आगम होता है। अस्तिसिचोऽपक्ते' (७।३।९६) से ईट्' आगम होता है। वदव्रजहलन्तस्याच:' (७।२।३) से वृद्धि होती है। वश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से दृश् के श् को प्, 'पढो: क: सि' (८।२।४१) से ष् को क् और 'आदेशप्रत्यययो:' (८।३।५९) से सिच के स् को षत्व होता है।
दृश् धातु के शलन्त और इगुपध होने से 'शल इगुपधादनिट: क्सः' (१।३।४५) से अनिट् च्लि' प्रत्यय के स्थान में क्स' आदेश प्राप्त था, इस सूत्र से उसका प्रतिषेध Jain Education International For Private & Personal Use Only
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