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किसी प्रकार का विरोध नहीं है। दोनों पक्ष एक 'कथंचित घट है । इसका क्या अर्थ है ?' किस ही वस्तु में विरोधभाव से रहते हैं।
अपेक्षा से घट है । स्वरूप की अपेक्षा से घट है और सप्तमंगों का स्वरूप
पररूप की अपेक्षा से घट नहीं है। सर्व पदार्थ १. कचित् घट है,
सह की अपेक्षा से हैं, पररूप की अपेक्षा से नहीं
हैं। स्वरूप और पररूप को समझना आवश्यक है। २. कथंचित् घट नहीं है।
नाम,स्थापना,द्रव्य और भाव से जिसकी विवक्षा ३. कथंचित् घट है और नहीं है,
होती है, वह स्वरूप या स्वात्मा है । वक्ता के प्रयो४. कथंचित् घट अवक्तव्य है,
जन के अनुसार अर्घ का ग्रहण करना, म्वात्मा का ५. कथंचित घट है और अबक्तव्य है,
ग्रहण कहलाता है। इसके विपरीत परात्मा का ६. कथंचित् घट नहीं है और अबक्तव्य है,
ग्रहण होता है । वस्तु के स्वरूप और उसके पररूप ७. कथंचित् घट है, नहीं है और अवक्तव्य है ।
को समझने से वास्तविक निर्णय हो जाता है, सही प्रथम भंग विधि की कल्पना के आधार पर
रूप सामने आता है। है। इसमें घट के अस्तित्व का विधिपूर्वक प्रति
चार निक्षेप , पादन है।
एक शब्द प्रयोजन के अनुसार अनेक अर्थों में दुसरा भंग प्रतिषेध की कल्पना के आधार पर
प्रयुक्त होता है। प्रत्येक शब्द का चार अर्थों में है। जिस अस्तित्व का प्रथम भंग में विधिपूर्वक
विभाग किया जाता है । इसी अर्थ विभाग को न्यास प्रतिपादन किया गया है, उसी का इसमें निषेध- एवं निक्षेप कहते हैं। ये चार विभाग है---नाम, पूर्वक प्रतिपादन किया गया है।
स्थापना, द्रव्य और भाव । किसी का एक नाम रख तीसरा भंग विधि और निषेध दोनों का ऋम देना, नाम निक्षेप । मूर्ति और चित्र आदि स्थापना से प्रतिपादन करता है। पहले विधि का ग्रहण निक्षेप है। भूतकाल और अनागत काल में रहने करता है और बाद में निषेध का। यह भंग प्रथम वाली योग्यता का वर्तमान में आरोप करना, द्रव्य और द्वितीय दोनों भंगों का संयोग है।
निक्षेप है। वर्तमानकालीन योग्यता का निर्देश चतुर्थ भंग विधि और निषेध का युगपत प्रति- करना भाव निक्षेप है । इन चारों निक्षेपों में रहने पादन करता है। दोनों का युगपत् प्रतिपादन होना. वाला जो विवक्षित अर्थ है, वह स्वरूप अथवा वचन के सामर्थ्य के बाहर है । अतएव इस मंग को स्वात्मा कहा जाता है। स्वात्मा से भिन्न अर्थ अवक्तव्य कहा गया है।
परात्मा अथवा पररूप है । विवक्षित अर्थ की दृष्टि
से घट है, तद्भिन्न दृष्टि से घट नहीं है । यदि इतर पांचवां भंग विधि और युगपत् विधि-निषेध दृष्टि से भी घट हो, तो नाम आदि व्यवहार अर्थात् दोनों का प्रतिपादन करता है। प्रथम और चतुर्थ
निक्षेप का उच्छेद हो जाएगा। अतः निक्षेप को के संयोग से यह भंग बनता है।
समझना अनिवार्य है। छठा भंग निषेध और युगपत् विधि और निषेध द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव दोनों का कथन है। यह भंग द्वितीय और चतुर्थ
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से स्वरूप दोनों का संयोग है।
और पररूप का विवेचन यहाँ आवश्यक है। घट सातवां भंग क्रम से विधि और निषेध और का द्रव्य मिट्टी है। जिस मिट्टी से घट बना है, युगपत् विधि और निषेध का प्रतिपादन करता है। उसकी अपेक्षा से वह सत् है । अन्य द्रव्य की अपेक्षा यह तृतीय और चतुर्थ भंग का संयोग है 1 से वह सत् नहीं है। क्षेत्र का अर्थ है-स्थान
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