Book Title: Nyayapraveshakashastram
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 17
________________ प्रस्तावना स्थलों पर शुरु की गई थी । ऐसे लकड़ी के पाटियों का सांचा बनाकर मुद्रित ग्रन्थों को (Xylographs) कहा जाता है । ऐसी कुरेदी हुई लाखों पट्टिकाएं (पाटीयाँ) उन-उन स्थानों पर हैं। जिन-जिन स्थानों पर इन पाटियों का संग्रह है उन-उन स्थानों पर मुद्रित ग्रन्थ (Xylographs) उन-उन स्थानों के नाम से पहचाने जाते हैं । जैसे- नार्थंग संस्करण, पेलिंग संस्करण, छोनी संस्करण, देर्गे संस्करण और ल्हासा संस्करण आदि । विश्व के विभिन्न स्थानों में नार्थंग संस्करण मिलता है। पेकिंग संस्करण बिब्लिओथेका नेशनाले नामक लायब्रेरी, पेरिस-फ्रांस में तथा जापान में भी है । छोनी संस्करण काँग्रेस पुस्तकालय, वॉशिंगटन-अमेरिका में है। देर्गे तिब्बत के पूर्व भाग में स्थित हैं, वहाँ से उन ग्रन्थों को लाया गया था इसीलिये वे देर्गे संस्करण कहलाते हैं। यह देर्गे संस्करण टोहोकु विश्वविद्यालय, सेन्डाई-जापान में है। पेकिंग संस्करण के आधार से ब्लॉक बनाकर पुनर्मुद्रित पेकिंग संस्करण के समस्त ग्रन्थ टोकियो (जापान) से अभी प्रकाशित होने के कारण पेकिंग संस्करण के समस्त ग्रन्थ सुलभ हो गए हैं। ये समस्त ग्रन्थ डेढ़सौ भागों में हैं। कौन से भाग में कौन-कौन सा ग्रन्थ किस-किस पृष्ठ पर है और उसका कर्ता कौन है, आदि की जानकारी देने वाली सूची (बृहद् केटलॉग) भी टोकियो (जापान) से प्रकाशित हुई है। वर्षों पूर्व प्रोफेसर येन्शो कानाकुरा द्वारा सम्पादित ऐसी बृहद् सूची जापान के टोहोकु विश्वविद्यालय से प्रकाशित हुई है, किन्तु उसमें आगत समस्त सूची टोहोकु विश्वविद्यालय में विद्यमान देगें संस्करण के आधार पर है । जिज्ञासुओं के लिए यह सूची मंगवाकर देखने योग्य है । विधुशेखर भट्टाचार्य ने नार्थंग संस्करण के आधार पर इस अनुवाद को रोमन लिपि में प्रकाशित किया था। हमारे पूर्व परिचित कल्याण मित्र जापान निवासी प्रो. फुजीनागा सिन ने तिब्बती लिपि में इस नार्थंग संस्करण के अनुवाद को तथा पेकिंग संस्करण के भी इसी अनुवाद को जापान में तिब्बती लिपिमें एन्ट्री करवाकर भेजा है। इन ग्रन्थों को तिब्बत के निवासी समझ सकें इसीलिए भोट भाषा में जब बौद्ध ग्रन्थों के अनुवाद किए जाते थे, उस समय यहाँ से गए हुए भारतीय पंडित तथा वहाँ के तिब्बती पंडित दोनों मिलकर अनुवाद को सम्पन्न करते थे। यह अनुवाद कई बार शब्दशः होते थे और कई बार भावानुवाद भी होते थे । यदि अनुवादक पूर्णतः विज्ञ नहीं होता तो वह अनुवाद में भी भूल कर जाता । पुनः जिस ग्रन्थ का अनुवाद करने का होता उसका मूल हस्तलिखित ग्रन्थ यदि अशुद्ध हो तो उस स्थान का अनुवाद भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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