Book Title: Nyayapraveshakashastram
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 16
________________ xiv प्रस्तावना आगमप्रभाकर पूज्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज ने जैसलमेर, खम्भात आदि की प्रतियों के आधार से इसके पाठ-भेद तथा खण्डित-पाठों की पूर्ति करने का अत्यन्त श्रमसाध्य पुण्यकार्य किया था । इन पाठों को पाद टिप्पण में या अलग रूप से सूचन करने वाली पू. मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज की बड़ौदा से प्रकाशित न्यायप्रवेशकवृत्ति- पञ्जिका की पुस्तक हमारे हाथ में आई । उसी का आधार लेकर तथा दूसरी अन्य प्राप्त सामग्री का उपयोग कर व्यवस्थित पद्धति से हमने संशोधन-संपादन किया है। बौद्ध-न्याय के इतिहास में यह महत्त्व का प्रकाशन है। हमने एकत्रित की हुई सामग्री में से कौन-कौन-सी और किस-किस प्रति का उपयोग किया है, वह इस ग्रन्थ के पृष्ठ १, १३, तथा ५६ की टिप्पण में विस्तार से दिखाया है। इसके अतिरिक्त इसी न्यायप्रवेशक संस्कृत भाषा का तिब्बत की भोट भाषा तथा चीन की चीनी भाषा में भी अनेक वर्षों पहले अनुवाद हो चुका है। उसी प्रकार चीनी भाषा से भोट भाषा में स्वतन्त्र अनुवाद भी हुआ है। इन सब को सन्मुख रखकर पण्डित विधुशेखर भट्टाचार्य ने ईस्वी सन् १९२७ में तिब्बती अनुवाद भी रोमन लिपि में प्रकाशित किया है। अनुवाद Central Library BARODA की ओर से Gaekwad's Oriental Series. No XXXIX रूप में प्रकाशित हुआ है। यह अनुवाद भी तिब्बती भाषा के अभ्यासी विद्वानों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा, ऐसा समझ कर हमनें मूल तिब्बती लिपि में ही पंचम भोट-परिशिष्ट में इसी ग्रन्थ में प्रकाशित किया है। यह तिब्बती लिपि पढ़ने में तथा लिखने में मेरी मातुश्री शत र्षाधिकायु साध्वीश्री मनोहरश्रीजी महाराज सा. की शिष्या परम सेविका साध्वीश्री सूर्यप्रभाश्रीजी म.सा. की शिष्या साध्वीश्री जिनेन्द्रप्रभाश्रीजी ने अत्यधिक सहयोग दिया है, इसके लिए वे साधुवाद की पात्रा हैं। __ हम जिसे तिब्बत कहते हैं वह हिमालय के उस पार का देश है, जिसका मूल नाम भोट है। वहाँ के निवासी भोटिया कहलाते हैं । उनकी भाषा भोट भाषा और लिपी भोट लिपि के रूप में यहाँ निर्दिष्ट की गई है । भिन्न-भिन्न विषयों के लगभग ५००० बौद्ध संस्कृत ग्रन्थों का सैंकड़ों वर्ष पूर्व भोट भाषा में अनुवाद हो चुका है। यह भोट भाषानुवाद कंजुर और तंजुर- दो विभागों में विभक्त है । प्रमाण (न्याय) शास्त्र के ग्रन्थ तंजुर विभाग में आते हैं । अनेक वर्षों पूर्व तिब्बत और चीन में इन अनुवादित ग्रन्थों को लकड़े के पाटियों पर कुरेद कर, लकड़ी के बीबां (सांचा, ढांचा, प्रतिकृति) बनाकर और उसके ऊपर से कागज के ऊपर छापने की प्रथा भिन्न-भिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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