Book Title: Nidi Sangaho
Author(s): Sunilsagar
Publisher: Jain Sahitya Vikray Kendra Udaipur

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Page 7
________________ बुद्ध आदि महापुरुषों की भाषा जानने की उत्कट अभिलाषा है, उन्हें प्राकृत के अन्तस्तल तक उतरना ही चाहिए । इसके अलावा जो प्राचीनतम साहित्य का आनन्द लेना चाहते हैं, उन्हें भी भाषा की प्रकृति का ज्ञान होना आवश्यक है । प्राकृत के प्रचार-प्रसार, अध्ययन-अध्यापन में प्रत्येक मनुष्य की रूचि होनी चाहिए, क्योंकि ब्राह्मी लिपि से अवतरित हुई यह प्राकृत ही मानव-भाषा की जननी है । ___णीदी -संगहो' नामक यह कृति एक प्रकार से लोक प्रचलित नीतियों का संग्रह मात्र है । सुप्रसिद्ध जैन राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्री चाणक्य की कई नीतियाँ तो केवल रूपान्तरित होकर ही प्रस्तुत कृति में समा गईं हैं । अन्य अनेक जैनाचार्यों के वाक्यांश भी इसमें संग्रहीत हो गए हैं । यह नीतियाँ अध्येताओं के लिए अवश्य ही लाभदायक सिद्ध होंगी, ऐसा मेरा विश्वास है । नीतियों के संग्रह एवं रूपान्तरण में समय का सदुपयोग, जन कल्याण एवं प्राकृत के प्रचार-प्रसार की भावना रही है । आचार्य आदिसागरजी (अंकलीकर) के तृतीय पट्टाधीश आचार्य श्री सन्मतिसागरजी के आशीर्वाद, मुनिश्री श्रेष्ठसागरजी एवं मुनिश्री सुन्दरसागरजी के सुझाव तथा डॉ. उदयचन्द्र जैन के सहयोग व मेरी कक्षा के जिज्ञासु विद्यार्थियों के आग्रह से प्रस्तुत कृति इस रूप में आ पाई है। वीर निर्वाण संवत् २५३० १४ नवम्बर २००३ है मुनिसुनीलसागर हूमड़ भवन, उदयपुर (राज.) VIT Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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