Book Title: Navtattva Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal View full book textPage 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रकाशक का निवेदन। नवतत्व की चतुर्थावृत्ति प्रकाशित करते हुए हमें हर्ष होता है । मण्डल हिन्दी जैन साहित्य को जो अपूर्व सेवा कर रही है वह आप लोगों से छिपा नहीं है । हिन्दी राष्ट्र भाषा होनेवालो है अतः जैन साहित्य का हिन्दी भाषा में प्रचार होना अतीव आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक की सहायता के लिए रु. १००) श्रीमती अंगूरी बीवी ने प्रदान किये हैं अतः मण्डल आपका अत्यन्त आभारी है और हम हमारे और दानवीर भाइयों को भी देश-काल गति का ध्यान रखते हुए हिन्दी साहित्य के प्रचार में मण्डल को सहायता देने के लिए आकृष्ट करते हैं। ___ काग़ज़ का महर्घता के कारण और छपाई का रेट भी बहुत बड़जाने से हमको मजबूर होकर इस आवृत्ति में कीमत बढ़ानी पड़ी है। यह मण्डल पं० अमृतलाल ताराचंद दोसी का भी आभारी है कि जिन्होंने इस आवृत्ति में बहुत सा संशोधन करके पुस्तक को ज्यादा उपयोगी बनाया है। मानद मन्त्री आगरा रोशन-महल्ला दयालचन्द जोहरी, जवाहरलाल नाहटा ता० २७-५-१९४५ श्रीवात्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडल For Private And PersonalPage Navigation
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