Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 17
________________ yRO मोहाज्ञानमदान्धवारणसुधीविध्वस्तधात्रीतलं वीक्ष्य द्राक् प्रतिपालनाय हरितामाधाय वीरध्वनिः । स्याद्वादातुलतर्कदन्तकिरणैर्मोहादि संनाशयन् । वादीन्द्रो विजयातियुक् [दयसूरीशश्चकास्तु क्षितौ ॥५॥ साहित्योदधितत्त्वमन्थनिहिताभीष्टार्थमाध्वीकभूः उद्यत्तर्कवितर्कमर्ममहिमक्षुभ्यद्विवादिव्रजः । पूज्य: श्रीयुतनन्दनो विजयभाक् सूरीशमान्यो बुधः विद्यावारिधिकोविदाग्र्यगणनः संराजतां भानुवत् ॥६॥ यदीयचरणाम्बुजच्युतसुधागलन्माधुरीः तपः प्रसृतजित्वरस्फुरदरीणविद्युद्द्युतिः । तपस्विमुनिसन्ततिः प्रमुदमानसा जृम्भते अहो शरणमस्तु सः रुचिरकीर्तिचान्द्रीं दधत् ॥७॥ इति समर्पयति व्याकरण-न्यायाचार्य-वेदान्त-तर्कतीर्थलब्धस्वर्णपदक श्रीशोभाकान्तझा-मैथिलपण्डितः ॥ द्राक्षा म्लानमुखी जाता शर्करा चाऽश्मतां गता । सुभाषितरसस्याऽग्रे सुधा भीता दिवं गता ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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