Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 109
________________ जाणधरो सज्जिय वणम्मि पहियो जाणधरो सो तहा णु गेहम्मि । विज्जा-मज्जण-भोयण-सुहयर-काळो हुवीय जीययि अ ॥ जाणपहो अडवीइ अ पुढवीइ अ जळम्मि गयणम्मि किं पहो होइ । जाणपहो सव्वपहं करेदि सुहसंचरं पुणो पेक्ख ॥ जाणं सव्वपहीणं रिअ कुडिलं वावि होइ विसयेहिं । जाणं सुद्धं सरळं गहणम्मि थिरं विसाळं अ॥ एक्को सन्तो विसमं समं कहेदि प्पहं को वि । विसम-विसयम्मि जादो कहं समं तं वियाणादि ।। दसणमग्गो दंसणमग्गो मग्गो भुत्ती मुत्ती अ होयि जत्थ सुहं । हिंसण-रहियं कायं वायं जे दे कुणन्ति दे सन्ता ॥ सुण्णं ठाणं पारं लोयस्स सुहं अणन्तं अहिलाणम् । सयतंतत्तण-भरियं बन्धण-रहियं कहेदि दंसणियो । सद्दो परिसो तेजं रुई अ गन्दो ण जत्थ बन्दंस । अप्पाणन्दमयम्मि अ मग्गट्ठाणम्मि लोअलोअन्ते ॥ १०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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