Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 107
________________ SA Fप्राकृतविभागः 16 COM सोलसमतित्थयरसिरिसंतिनाहथुई मुनिकल्याणकीर्तिविजयः (पञ्चचामरच्छन्दः) नमामि संतसामिणं पसंतरूवभासिणं णु सिद्धिगोरियाएँ सद्धि संततं विलासिणं । जणाण संतिकारयं तहा य भंतिवारयं पहाणखंति-गुत्ति-मुत्ति-संतियामहालयं ॥१॥ तवं तवित्तु मोहमल्लमद्दणे समुज्जयं सुदुट्ठअट्ठकम्ममम्मभेयणे सउज्जयं । सएव देव-मच्चसामिवंदियं अणिदियं समग्गजीवलोयसोयनासयं जिइंदियं ॥२॥ समत्तभावजाणगं समत्तभावपासगं समत्तभव्वपाणियाण मक्खमग्गसासगं विसुद्धतत्तभासगं विसुद्धधम्मदासँगं विसुद्धचित्तभावओ य संततं नमामि हं ॥३॥ * दासृग-दाने । USCOCCIGUSEUICONOSCOGEGGONGOV Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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