Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 108
________________ A पाउड-मुत्तावचायो अरैयर् श्रीरामशर्मा धणम् को से दोसो एसो जस्स ण रक्खा ण सन्तविणियोया । लिहियठ्ठिय-पुत्तियधण-गणियब्बासेण हद्धि धणियाणं ॥ ढण-ढण-ढण-धण-रूवं सर-सर-सर-से त्ति अज्ज होदित्ति । घण-ळोह-कागजाणं भेदाहिन्तो वि सरण-गुणहिन्तो ॥ F'प्राकृतविभागः4 चन्दो रयिणा प्पहासियाये दिसाये चन्दो ण चुम्बइ ख्खु मुहम् । लीणे रयिम्मि चन्दो सव्वदिसाणं रुयिं रयिं भरइ ॥ संतसंगो जत्थ णु तित्थयराणं सङ्घो सङ्गो ण दिस्सइ असङ्गो । तत्थ कहेहि हुवीयदि किं णु सु-पुण्णावळी स-कहा ? ।। सुजणो जाणं जत्थ णु तत्थ णु लब्बीयदि सुप्पहो णु सुजणस्स । अंधस्स जाणमग्ग-ब्भट्टस्स गुरू स होइ अवळम्बो ॥ - भावसुद्धी तपो अज्ज वि जुज्जइ लोये तपेण सव्वं णु सिज्झयि त्ति हळा । जाव ण हु भावसुद्धी तपेण तप एव्व णो सिद्वी ॥ शा तित्थम् तित्थं कुणन्ति दे जे तित्थपयं घेप्पियेव्व हिययम्मि । ण णयो ण सरं तित्थं, सुजणाणं जाण वायणं तित्थम् ॥ ९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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