Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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(२)
गुर्जरमूलम् - शैला पण्डित हे ईश्वर ! मने अन्धकार रुचतो नथी. हुं सदाय उजास झंखुं छु. अन्धकार पर फिटकार वरसाववो ए करतां एक कोडियुं पेटावq हजार दरज्जे रूढुं छे आजना दिवसने मारी समस्याना एक अंश तरीके नही, पण समस्याना आंशिक उकेल तरीके निहाळी शकुं एवी मने सूझ आप.
(२)
अनु. मुनिधर्मकीर्तिविजयः हे ईश ! मह्यं न रोचते तमः । सर्वदा प्रकाश एवाऽभिलाषो मम । न धिक्करणीयोऽन्धकारः किन्तु, कर्तव्यं दीपप्रकटनं उत्तम एष प्रकारः । अद्यतनं दिवसमहं न मम समस्याया अंशरूपेण अपि तु समस्यायाः परिहाररूपेण यथा पश्येयं तथा बोधो देयः ।
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