Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 25
________________ राष्ट्र-गायत्री* डो. वासुदेव वि. पाठकः “वागर्थ' ॐ अस्मद्राष्ट्राय विद्महे राष्ट्रीयत्वाय धीमहि । तन्नो राष्ट्र प्रणोदयात् ॥ समेषां हितार्था समेषां शुभार्था सदा संस्कृतैस्संस्कृता सत्त्वशीला । वरैर्वन्द्यते वन्दनीया विशिष्टा वरा वत्सला मातृभूमिर्मदीया ॥ वयं गूर्जरीयास्तथा कोङ्कणीयाः वयं काश्मिरीयास्तथाऽऽन्धस्थिता वा । महाराष्ट्रीयाः केरलीयास्तथापि, वयं गौरवाढ्यास्सदा भारतीयाः ॥ सदा सत्कार्य मे प्रबलतरवाञ्छा विकसतु सुरम्ये सत्कार्ये सकलजनसौख्यं विलसतु । समेषां सौख्ये मे गुरुतरतया तोषमयता प्रणामैर्विश्वार्थं गुरुवर ! तथा मोदलयता ॥ * यस्य कस्यापि राष्ट्रस्य सन्दर्भे ॥ १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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