Book Title: Nandanvan Kalpataru 2009 10 SrNo 23
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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हन्त नाऽकर्णितो जातु शङ्खध्वनिः श्रोत्ररन्धं न गानामृतैस्तर्पितम् । रञ्जितं नो हृदुद्गीथजातैश्चिरं संसृतौ नाम रूपं वृथा दध्महे ॥७॥
देवदास्यङ्गहारा न सम्प्रेक्षिता नाऽपि मुद्रा, न चारी, न पूजाविधिः । वञ्चिताः प्रच्युता हन्त लोकादराज्जीर्णभित्तौ गृहे किं वयं कुर्महे ॥८॥
मन्दिरेषु त्रिसन्ध्यं समाराधिता मूर्तयस्सन्त्यनेकाः, परं ता वयम् । दैवयोगादनावृत्तवातायनामल्लिकावातगन्धं प्रतीक्षामहे ॥९॥
नित्यरुद्धप्रवेशे गृहेऽस्मिन् कथं हन्त जायेत चन्द्रार्कयोदर्शनम् ? दुष्करं तत्कृतं औरहो सम्भवं नित्यबन्धून् गवाक्षान्निजीकुर्महे ॥१०॥
म्लेच्छसंस्पर्शदोषैर्वयं दूषिताः गौतमार्धाङ्गिनीवाऽश्मतां प्रापिताः । कञ्चिदुद्धारकं कीर्तिविस्तारकं राघवं रामभद्रं प्रतीक्षामहे ॥११॥
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