Book Title: Nandanvan Kalpataru 2000 00 SrNo 04
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti
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मित्रसन्तापः
( १ ) त्वयि हन्त वयस्यपश्चिमे सति मित्रे प्रलयं समेष्यति । हृदयं च तमः समावृतं सततं मेऽश्रुवृते विलोचने ॥
एम्. के. नञ्जुण्डस्वामी
(२) ज्वलति त्वयि नाऽर्पितं सखे हृदुपोढं कियदप्युपायनम् । अयि संप्रति निर्गते त्वयि प्रतिखेदो हृदये कियानयम् ।
(३) तव हासवचांसि यान्यतिप्रमुदे पूर्वमुदाहृतान्यहः । इह दुःखकृते स्मृतानि चेत् प्रणयेनाऽलमलं सुहृत्तया ॥
(४) तव संस्मरणाश्रुणाऽऽप्लुते मम चित्ते विमले मृदुन्यपि प्रतिबिम्बमनुप्रवेशितं वद केनाऽद्य विचाल्यते तव ॥
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