Book Title: Nandanvan Kalpataru 2000 00 SrNo 04
Author(s): Kirtitrai
Publisher: Jain Granth Prakashan Samiti

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Page 93
________________ अस्थि-सिरिजिणेसरभगवंता अट्ठविहाई कम्माई खविऊण अणंतनाणाई अट्ठ गुणे पयडीकाउं सिद्धिगई पत्ता । अओ अम्हे वि तेसिं पूया अट्टप्पयारेहिं अट्टपुप्फेहिं वा करिऊण ताई अम्माई खविडं समत्था हवेमो इइ एएण अत्थेण पूयाए अट्ठत्ति संखा गहिआ अत्थि । अहुणा भावपूयाए अवसरो । किंतु अज्ज मह समओ नत्थि । अओ अण्णंमि पत्तंमि तस्सरूवं जाणाविस्सं ति सं ॥ Jain Education International वन्निज्जई भिच्चगुणो न परुक्खं न य सुयस्स पच्चक्खं । महिलाए नोभया वि हु न नस्सए जेण माहप्पं ॥ } ( उवएसरयणकोस- १७) NO ८६ Ev For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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