Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सटीक मूलशुद्धिप्रकरणम् [४. भीम-महाभीमयोः कथानकम् ।] अस्थि गयणतलविलग्गदुग्गसिहरसयसंकुलो नाणादुमसंडमंडियनियंबुद्देसो संचरंतभीसणसावयकुलमेहलातडविभागो बहुगुहानिवसंतसबरसंघाओ परिपेरंतभमंतवणहत्थिजूहो महानइनम्मयापवाहुप्पत्तिभूमी निझरणझरंतझंकारबहिरियदिसावलयो वन्नरबुक्कारपउरो सिहिगणकेक्कारव-कोइलाकुलकोलाहलमुहलो विज्झो नाम पवओ। तस्स य विसमाहोभागनिविट्ठा अत्थि वंसकलंकी नाम चोरपल्ली । तीए य समत्थचोराहिवा भीम-महाभीमाहिहाणा दुवे भायरो परिवसंति । ते य सम्मदिट्ठिणो वि अविरया पाणिवहाइपसत्ता पायं चोरियाए चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरति । अन्नया य सत्थेणं सह अणिययविहारेणं विहरमाणो चंदो व्व सोमयाए, सूरो व्व तवतेयदित्तीए, धरणीतलं व खंतीए, जलहि व्व गंभीरयाए, सुरसेलो व्व थिरयाए, गयणतलं व निरालंबयाए, मेहो व्व दुहसंतावतवियभञ्वसत्तसंतावावहारयाए, सुरगुरु व बुद्धीए तक्कालवट्टमाणसुयसागरपारगामी परोजगारकरणेक्कतल्लिच्छचित्तो, किं बहुणा ? जिणधम्मो व्व मुत्तिमंतो सुसाहुजणपरिवुडो समागओ तं पल्लिप्पएसं धम्मघोसो नाम सूरी । एत्थंतरस्मि य
आवरियं गयणयलं तमालदलसामलेहिं जलएहिं । अइगजियसदेणं फुट्टइ व नहंगणं सहसा ॥ १ विजू य चमकंती, पीवरधाराहि निवडए सलिलं । पूरागया नईओ, चिक्खल्लचिलिच्चिला मग्गा ॥ २ जलपुन्ना संगाहा, भमंति इंदोयगाइबहुजीवा । किं बहुणा ? संजाया उब्भिन्ननवंकुरा धरणी ॥ ३
तं च तारिसं पाउससिरिमवलोइऊण भणिया गुरुणा साहुणो जहा 'संपयं गच्छंताणमसंजमो, ता गवेसह इत्थेव पल्लीए पाउसकरणनिमित्तं वसहि' । तओ 'इच्छंति भणिऊण पविट्ठा तत्थ पल्लीए । पुच्छिओ मज्झत्थवओ कोइ जहा 'अस्थि इत्थ कोइ जो अम्हाणं उबस्सयं देइ ?' तेण भणियं 'बच्चह इत्थ गेहे पल्लीवईण समीवं, ते तुम्ह भत्ता' । तओ पविट्ठा तत्थ गेहे साहुणो। दिट्ठा य तेहिं । तओ 'अहो! असंकप्पिओ गेहंगणे कप्पहुमुग्गमो, अचिंतिओ चिंतामणिसंगमो, अकाभियं कामवेणुसमागमणं, अप्पत्थिया कामघडसंपत्ति' त्ति चिंतेंता हरिसुप्फुल्ललोयणा पडिया पाएसु । भणियं च 'आइसह जमम्हेहिं कायव्वं ?' । साहूहिं भणियं जहा 'पेसिया अम्हे गुरुणा चाउम्मासिकरणजोगोवस्सयगवेसणनिमित्तं, ता किमत्थि कोइ उवस्सओ?'। तओ 'अणुग्गहोत्ति भणमाणेहिं दंसिओ जइजणस्स पाउग्गो उवस्सओ । समागया य सूरिणो । संभासिऊण सेजायरे ठिआ तत्थ नियधम्मजोगपरायणा । "ते य पल्लिनाहा तब्भत्तिसंजुत्ता गर्मिति कालं । अवि य
कइया वि हु सज्झायं मुणिवरवयणाओं निग्गयं महुरं । संवेगभावियमणा सुणंति अमयं व घोट्टिन्ता ॥ ४ कझ्या वि धम्मझाणं झियायमाणे मुणीसरे मुइया । तम्मुहनिहित्तनयणा खणमेकं प वासेन्ति ॥ ५ कइया वि हु पडिलेहण-पमज्जणाईसु उज्जए साहू । अवलोइऊण हरिसं वच्चंति गुणाणुरागेण ॥ ६ कइया वि हु वक्खाणं सुगंति गुरुमुहविणिग्गयं तुट्ठा । दुत्तरभवनीरायरतारणवरजाणवत्तं व ॥ ७ एवं च भत्तिभरणिब्भराण जइपज्जुवासणपराणं । संवेगभावियाणं वोलीणो पाउसो ताणं ॥ ८ अह अन्नया कयाई पढंति गुरुणो मुंणी समुद्दिसिउं । एयं गाहाजुयलं ताण सुणताण दोण्हं पि ॥ ९
उँच्छू बोलिंति वई तुंबीओ जायपुत्तभंडाओ । वसहा जायत्थामा गामा पव्वायचिक्खल्ला ॥ ३१
10 D °रझरं। 20 D पाणव। 3A B°वद्धमा। 4 C D उ। 50 D °ओ य म°160 D°णमुव । 7 भक्तौ उपासकावित्यर्थः। 8 A B °प्पियगे। 9 C D °म्मासक। 100 D °णपाओग्गो। 11 A B ते पल्लि । 12 मुनीन् । 13 इमे ३१-३२ अङ्कयुक्ते द्वे गाथे ओघनिर्युक्तेः १७०-१७१अङ्कतमे स्तः, बृहत्कल्पभाष्ये १५३९-४०
मकवत्यौ च द्वितीयगाथाचतुर्थचरणपाठान्तरसमेते लभ्येते, तद्यथा-विहरणकालो सुविहियाणं । 14 प्रम्लानकर्दमाः। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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