Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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१०४
सटीके मूलशुद्धिप्रकरणे द्वितीय स्थानकम् विगलियमयम्मि जरजजरम्मि हल्लंतदंतमुसलम्मि । होइ सणाहं जूहं जूहवइम्मि धरंतम्मि ॥६७ ___ता जो अम्हेहिं कुटुंतरिएहिं निसुणिओ अहिणवसूरीण गुरूहिं देजमाणो अंजणपओगो तं करेमु' त्ति । परोप्परं संवित्तीए तहेवाऽणुट्ठिओ, सिद्धो य । तेण य अंजणप्पओगेण अदिस्समाणा दो वि गया राइणो चंदउत्तस्स भोयणमंडवं । उवविट्ठा य रण्णो उभयपासेसु । भोत्तूर्णं य णरवइथाले दिणे दिणे समागच्छंति । राया वि अण्णदिणोव्वरियभत्तप्पमाणे जाए अजिण्णभएण उट्ठविज्जइ विजेहिं । एवं च एगजणभत्ते तिहिं जणेहिं भुज्जमाणे अतिप्पमाणो दुब्बलीहोइ चंदउत्तो । तं च तारसं दट्टण भणियं चाणक्केण 'किं तुम पि दुक्कालिओ ? जेण दुब्बलो जाओ' त्ति । चंदगुत्तेण भणियं 'सच्चं, अज्जो ! ण याणामि कारणं, किंतु अहं ण तिप्पामि' । चाणक्केण चिंतियं 'नूणं को वि सिद्धो अवंतराओ एयस्साऽऽहारं भक्खेइ; अओ एस ण तिप्पई' । तओ बीयदिणे पक्खित्तो सव्वत्थ भोयणमंडवे इट्टालचुण्णो, दिट्ठा य दुण्हं बालवयसाणं पयपंती, णायं च जहा 'दो लहुवयसा सिद्धा समागच्छंति' । अन्नम्मि दिणे भोयणमंडवस्स दुवाराइं पिहित्ता कओ मझे धूमो । तेण य गलियं तल्लोयणाणमंजणं । दिट्ठा य रण्णो उभयपासोवविट्ठा दुवे चेल्लया । तओ चंदगुत्तो 'अहमेएहिं विट्टालिओ'त्ति विमणदुम्मणो जाओ । तं च तारिसमवलोइऊण चाणक्केण भणियं, अवि य
रे! किं विमणो जाओ? अज्जं चिय नूण सुद्धओ तं सि । बालकुमारजईहिं सह भुत्तो जं सि एगत्थ ॥६८ को साहूहिँ समाणं भोत्तु पावेइ एगथालम्मि ? । ता तं चिय सकयत्थो सुलद्धमिह जीवियं तुज्झ ॥६९ धण्णो य पुण्णभाई परमपवित्तो तुमं चिय णरिंद ! । लाभा उ ते सुलद्धा जं बालमुणीहिँ सह जिमिओ ॥७० एए च्चिय सकयत्था जियलोएँ वज्जिऊण जे भोए । बालत्ते णिक्खंता जिणिंदधम्मे जओ भणियं ॥७१ धण्णा हु बालमुणिणो बालत्तणयम्मि गहियसामण्णा । अणरसियणिव्विसेसा जेहिँ न दिट्ठो पियवियोगो ॥७२
एवमणुसासेऊण चंदउत्तं विसजिया चेल्लया । अप्पणा य गओ गुरुसमीवं । भणिया य गुरुणो 'जइ तुब्भं पि सीसा एवं करेंति ता कत्थऽण्णत्थ सोहणं भविस्सइ ?, ता णिवारेजह एए' । तओ गुरूहिं भणिओ चाणको जहा 'भद्द ! सावगो होऊण अप्पाणं विगोएसि?, नाममित्तेण चेव तुट्ठो?, एवंविहपमत्तयाए नित्थरिहिसि संसारं ?, जमेएसिं दुण्हं पि खुड्डगाणं ण वहसि वट्टमाणिं, एएण चेव कारणेणं साहू अण्णत्थ पेसिया, एए उण वलिऊणाऽऽगया, ता किं इत्तियस्स पावारंभस्स अण्णं ते फलं भविस्सइ ?, उक्तं च
जस्स ण जइणो गेण्हंति कह वि जत्तेण जोइयं दाणं ।
सो किं गिही ?, मुहा होइ तस्स घरवासवासंगो ॥ १६७॥ तथा
प(वोल्लरि पाणिइ नवई तणि, अण्णु वि अण्णह उप्परि नाडइ ।
भल्लउ तावहिं जाणियइ, जावहि जलहरु बिंदु न पाडइ' ॥ १६८ ।। एयमायण्णिऊण लजिओ चाणको। 'इच्छामो अणुसटिं, जं उद्धरिओ अहं निवडमाणो । चोयणवरवहणेणं संसारमहासमुंदाओ ॥७३ फासुयएसणिएणं अहापवत्तेण भत्तपाणेणं । कारेज्जह अणुदिवस अणुग्गहं मज्झ गेहम्मि ॥७४ खमियव्वं च असेसं जमुवालं भेण खेइया सामि!' । इय भणिउं चाणको गओ य निययम्मि गेहम्मि ॥७५
तत्थ य चितिउमाढत्तो 'हंत खंडुओ व्व अदिस्समाणो जइ को वि वेइरिओ विसं संकामेइ ता न सोहणं होइ, किंच पुव्वं पि विसकण्णगापओगाओ कहिंचि छुट्टो एस राया, तो संपयं तहा करेमि जहा विसप्पओ
1 'ता' इति A-Bपुस्तकयो स्ति । 2 C D निसुओ। 3A B सवित्ती। 4 C D ण णर। 5 C D °णेहिं अ°। 6 C D समत्थभोय। 7 C D लाभा हु ते। 8 C D °ए उज्झिऊण । 9A B °सिं खुड्ड। 10 CD पत्तरि । 11 C D तृणि। 12 ODमुद्दम्मि। 130 D°दियहं। 140D खुड्य व्व। 15 C D वेरिओ।
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