Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 125
________________ १०२ सटीके मूलशुद्धिप्रकरणे द्वितीय स्थानकम् णाऊणं तब्भावं मज्झत्थो चेव संठिओ राया। पव्वयगो वि य पंचत्तमुवगओ वेयणक्तो ॥ ५५ तओ दोसु वि रजेसु चंदगुत्तो चेव राया जाओ। इओ य नंदरायसंतिया पुरिसा चोरियं कुणंति । चाणको वि चोरग्गाहमग्गणत्थं परावत्तियवेसो भिक्ख भमइ । तओ पिच्छइ नलदामकुविंदं पडयं वुणमाणं, तस्स य पुत्तो रममाणो मंकोडएहिं खइओ। सो य रडतो पिउणो णिवेयइ । तेण वि कुद्धेण मुइंगबिलं खणेऊण कारीसं पक्खिविय सव्वे दड्डा । तओ ‘सोहणो एस णयरारक्खो'त्ति ठिओ चाणक्कचित्ते । घरं गएण सद्दावेत्ता ठाविओ तलारपए । तेण वि वीसासेत्ता भणिया सव्वे वि तकरा जहा 'विलसह संपयं जहिच्छाए अम्ह चेव रज्जं' । तओ अण्णम्मि दिणे सव्वे वि सपुत्तदारा णिमंतिया । भोयणोवविठ्ठाण य दाराइं पिहित्ता गेहं पजालिऊण उत्थाइया । तओ णगरस्स सुत्थे जाए पुणो वि 'को मज्झ अहिओ ?' त्ति चिंतंतस्स कप्पडियत्तणे अदिन्नभिक्खो चडिओ एगो गामो चित्ते । रूसेऊण तस्सोवीरं दिन्नो गामेल्लगाणं खुद्दाएसो जहा रे! तुम्ह गामे अंबगा वंसा य संति, ता अंबगे छित्तूण वंसाण परिक्खेवं करेह' । तओ तेहिं गामेल्लएहिं परमत्थमयाणमाणेहिं नियबुद्धीए 'अंबगा रक्खणीय त्ति रायाएसो संभावेजइ' त्ति परिभावेऊण वंसे छिंदिऊण अंबगाण पागारो कओ। तैओ तं विवरीयवयणकरणछिदं लाइऊण सनर-नारि-डिंभरूव-चउप्पओ दाराणि पिहित्ता सव्यो पलीविओ गामो। तओ अन्नम्मि दिणे कोसणिरूवणं कुणंतेण दिटुं सव्वं सुण्णं भंडागारं । तप्पूरणत्थं च कया कूडपासया । ठावियं च नियपुरिससमेयं दीणारपडिउन्नं सुवण्णमयं थालं । भणइ य सो पुरिसो ‘जो ममं जिणइ सो एयं थालं गेण्हइ, अह मया जिप्पइ तो एगं दीणारं देई' । तओ तेण थाललोभेण पभूयलोगो रमइ, न य कोई जिणइ, जओ ते पासया तस्स पुरिसस्स इच्छाए पडंति । चाणक्केण य चितियं 'पभूयकालिओ एस उवाओ ता अन्न उवायं पयट्टेमि' त्ति । ता को उण उवाओ भवेस्सई ?, हुं नायं मजं पाएमि सव्वे कोडुंबिणो जेण णियघरवत्ताए परमत्थं कहंति, जओ कुवियस्स आउरस्स य वसणं पत्तस्स रागरत्तस्स । मत्तस्स मरंतस्स य सब्भावा पायडा इंति' ॥ ५६ त्ति परिभाविऊण णिमंतिओ कोडुंबियलोगो। पाइओ सव्यो वि मज्जं, न य अप्पणा पियइ । तओ जाव सव्वे मत्ता ताव मयपराहीणो व्व तेसिं भावपरिक्खणत्थं जंपिउमाढत्तो, अवि य दो मज्झ धाउरत्ताओ कंचणकुंडिया तिदंडं च । राया मे वसवत्ती, एत्थ वि ता मे होल वाएहि ॥ १६० ॥ अण्णो असहमाणो भणइ गयपोययस्स मत्तस्स उप्पइयस्स जोयणसहस्सं । पए पए सयसहस्सं, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ॥ १६१ ॥ अन्नो भणइ तिलआढयस्स उत्तस्स निप्फण्णस्स बहुसइयस्स । तिले तिले सयसहस्सं, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ॥ १६२ ॥ अन्नो भणइ नवपाउसम्मि पुण्णाएँ गिरिनइयाएँ सिग्यवेगाए । एगाहमहियमित्तेण णवणीएण पालिं बंधामि, इत्थ वि ता मे होल वाएहि ॥१६३॥ 10 D मक्कोड। 2 0 D °ण य त । 3 A B °ओ विव। 4 A B तो। 5 A B °इ ?त्ति, हुं। 6-9 A B वाएह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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