Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सटीके मूलशुद्धिप्रकरणे चतुर्थ स्थानकम् आदिशब्दाद् देवधर-देवदिन्ना-ऽभिनवश्रेष्ठिप्रभृतयो ज्ञातव्याः । तत्र देवधरकथानकमिदम्
[२५. देवधरकथानकम्] अस्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे कलिंगाजणवए रम्मत्तणाइगुणगणोहामियतियसपुरिसोहासमुदयं कंचणपुरं णाम णगरं । तत्थं य गरुयपरक्कमक्कंतदरियारिमंडलो सैदाणुरत्तभूमिमंडलो रूवाइगुणगणोहामियाऽऽखंडलो भामंडलो णाम राया । तस्स य नियछाय व्व सयाणुवत्तिणी कित्तिमई नाम देवी ।
इओ य तम्मि चेव नगरे सयलमहायणप्पहाणो सुंदराहिहाणो सेट्ठी। सुंदरी से भारिया । तीसे य जायाणि अवच्चाणि विणिघायमावजंति । अणेगोवायपराए वि न एगं पि जीवइ । तओ कयाइ महामाणसियदुक्खकंताएं चिंतियं, अवि य'धी धी ! मम जम्मेणं निप्फलपसवेण दुक्खपउरेणं । जेणेगं पि अवच्चं नो जीवइ मह अपुण्णाए ॥ १ नूणं अवहरियाई कस्सइ रयणाइँ अण्णजम्मम्मि । जेण ममाऽवच्चाई निमित्तविरहेण वि मरंति ॥ २
अइहरिसनिब्भरेहिं जाइँ अकजाइँ कहव कीरति । ताणेरिसो विवागो दुव्विसहो ज्झत्ति उवणमइ ॥ ३ एवं चिंताउराए समागया देसियालियागयमूरपालरायउत्तमज्जा पियमई नाम तीए पियसही । जंपियं च तीए 'हला ! किमुव्विग्गा विय लक्खीयसि ?' । सुंदरीए भणियं--
'पिइ-माइ-भाइ-भगिणी-भज्जा-पुत्ताइयाण सव्वाण । कीरइ जं पि रहस्सं न रहस्सं तं पि हु सहीणं ॥ ४ ता भगिणि ! अवच्चमरणं मम गरुयमुव्वेगकारणं' । पियमईए भणियं
'जं जेण जहा जम्मंतरम्मि जीवेणुवज्जियं कम्मं । तं तेग तहा पियसहि ! भोत्तव्यं नत्थि संदेहो ॥ ५ परं मा संतप्प, में गब्भवई मोत्तण गओ देसियालियाए मम पिययो, ताजं ममाऽवच्चं भविस्सइ तं मए तुज्झाऽवस्सं दायव्वं' । सुंदरीए भणियं 'जइ एवं ता मह गेहे चेवाऽऽiतूण चिट्ठसु जओ ममाऽवि सममाहूओ चिट्ठए गब्भो, ता जइ कहिंचि दिव्वजोएणं समयं पसवामो तो अईवसोहणं भवइ, न य करसवि रहस्सं पयडियव्यं' । सा वि 'तह'त्ति सव्यं पडिवजिऊण ठिया तीए चेव गिहे । कम्मधम्मसंजोएण सनगं चेव पसूयाओ। कओ य मयग-जीवंतयदारगाण परावत्तो। कइवयदिणेहिं च तहाविहरोगेण पंचत्तमुवगया पियमई । सुंदरीए य अणेगाइं सिटिइं लोगे पयडिऊण जहोचियसमए कयं दारयस्स नामं देवधरो त्ति । पवद्धमाणो य जाओ अट्ठवारिसिओ।
तओ जाव सिक्खिओ बावत्तरिं कलाओ ताव पुव्यकयकम्मदोसेण मयाइं जणणि-जणयाई, उच्छण्णो सयणवग्गो, पणट्ठो सम्बो विविहविहवित्थरो, जाओ एगागी, गहिओ' महादरिदेण । अणिव्यहंतो य करेइ वुत्ताणत्तयं धणसेटिगेहे । भुंजइ तत्थेव । 'कुलजो" य सावओ'त्ति जाइ पइदिणं चेइयभवणेसु, वंदए चेइयाई, गच्छए साहु-साहुणीवंदणत्थं तदुवस्सएसु । एवं च वच्चमाणे काले अण्णया कयाइ कम्हि पगरणे परिविलृ संपयाहिहाणाए सैट्ठिणीए विसिहँ मणुण्णं च तस्स भोयणं । एत्थंतरम्मि य,
1A B °नकम्-अस्थि । 2 0 D पुरसो । 3 C D °स्थ गरु। 4 C D सयाणुरत्तभूमंड। 5A B °ए य चिं। 6 C D धिद्धी! मज्जम्मेणं। 70 D°सरेण। 80D मम अ। 90 D एवं च चिं। 10 0 D ताययाण । 11 A B°ओ देसिओ देसियालिए। 120 D समाहओ। 13 A B स्सय र। 14 C D गं च पसू । 150 पिइमई। 16 A सिटिराई। 17 C D °ववित्थारो। 18 CD ओ य महा। 190 D°जए त। 200D जोगियसा।
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