Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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कार्तिकश्रेष्ठिकथानकम्
[१२. कार्तिकश्रेष्ठिकथानकम् ] अस्थि इह जंबुदीवे भारहखेत्तस्स मज्झयारम्मि । कुरुजणवयम्मि रम्मं वरणयरं हत्थिणायपुरं ॥ १ तत्थ य राया णिययप्पयावअकंतदरियणरणाहो । जियसत्तू णामेणं समत्थगुणरयणसरिणाहो ॥ २ अण्णो वि सुप्पसिद्धो सेट्ठी णामेण कत्तिओ अत्थि । नेगमसहस्ससामी जीवा-ऽजीवाइतत्तविऊ ॥ ३ चालेजइ तियसेहिँ वि जो ण वि जिणसासणाओ थिरचित्तो। संवेगभावियप्पा, किं बहुणा ? अभयसारिच्छो ॥४ बीओ वि तत्थ सेट्ठी पुन्वोइयगुणजुओ महासत्तो । णामेण गंगदत्तो रिद्धीए धणयसारिच्छो ॥ ५ अह अन्नया कयाई वरकेवलणाणकिरणजालेण । उज्जोइयभुवणयलो मुणिसुव्वयसामितित्थयरो ॥ ६ गामा-ऽऽगर-णगराइसु विहरंतो समणसंघपरिकिण्णो । तियसिंदपणयचलणो संपत्तो हत्थिणायउरे ॥ ७ देवहिँ समोसरणे रइए उवविसइ जाव जिणइंदो । तियसा-ऽसुर-नर-तिरिएहिँ पूरियं ता समोसरणं ॥ ८ भगवं पि तओ धम्मं कहेइ णवजलयसरिसणिग्घोसो। सोऊण तयं बहवे पडिबुद्धा पाणिणो भव्वा ॥ ९ इत्थंतरम्मि सो गंगदत्तसेट्ठी भवण्णवोव्विग्गो । वंदेत्तु जिणं विण्णवइ पयडरोमंचकंचुइगो ॥ १० 'भगवं ! जा पढमसुयं ठावेमि गिहम्मि ताव पव्वजं । गिण्हामि तुम्ह चलणाण अंतिए मोक्खसोक्खत्थी' ॥११ 'मा काहिसि पडिबंध' भणियम्मि जिणेण, तो गिहे गंतुं । ठाविय सुयं कुटुंबे सिबियारूढो विभूईए ॥ १२ गंतु जिणपयमूले पव्वजं गेण्डिऊण णिरवेक्खो । णिययतणुम्मि महप्पा काऊणोग्गं तवच्चरणं ॥ १३ णिड्डधायकम्मो उप्पाडियविमलकेवलण्णाणो । मोत्तूण देहकवयं संपत्तो सासयं ठाणं ॥ १४ एत्तो य तत्थ णयरे णाणाविहतवविसेसखवियंगो। परिवायगकिरियाए उज्जुत्तो सत्थणिम्माओ ॥ १५ लोएण महिजतो एगो परिवायगो समणुपत्तो । अइगव्वमुव्वहंतो मासंमासेण खवयंतो ॥ १६ तं सव्वं पि य णयरं जायं तब्भत्तयं, तओ तं तु । पुरमज्झेणं इन्तं पाएणऽब्भुट्ठए लोओ ॥ १७ णवरं कत्तियसेट्ठी णिम्मलसम्मत्तरयणसंजुत्तो । जिणसासणाणुरत्तो अब्भुट्ठइ णेय तं एगो ॥ १८ एवं च 'णिएऊणं ईसाबसपवणदीविएणं तु । कोवाणलेण सययं अच्चत्थं दज्झए एसो ॥ १९ अह अन्नया णरेंदो तग्गुणगणरायरंजिओ अहियं । विण्णवइ पार्यपडिओ ‘भगवं ! पारेह मह गेहे' ॥ २० पडिवज्जइ ण य एसो, राया वि य विष्णवेइ पुणरुत्तं । जाव तओ तेण णिवो भणिओ ईसीवसगएण ॥ २१ 'जइ परिवेसइ कत्तियसेट्ठी पारेमि तो तुह गिह म्मि' । भत्तिवसणिब्भरेणं पडिवण्णं तं णिवेणावि ॥ २२ तत्तो कत्तियगेहे राया सयमेव जाइ सहस त्ति । सेट्ठी वि पहुं दह्र अब्भुट्ठाणाइपडिवत्तिं ॥ २३ । काउं जोडियहत्थो विण्णवई 'सामि ! किंकरजणे वि । अइसंभमकरणमिणं किं कारणमाइसह तुरियं' ॥ २४ राया वि करे घेत्तुं पभणइ 'मह संतियं इमं वयणं । कायवमेव एगं गेहम्मि समागयेस्स तए ॥ २५ पारेतस्स भगवओ भगवस्स उ मह गिहम्मि तुमए वि । नियहत्थेणं सुंदर ! परिवेसेयव्वमवियारं' ॥ २६ सेट्ठी वि आह 'एवं ण कप्पए मज्झ, किंतु तुह वासे । जेण वसेजइ कायव्वमेव एवं मए तेण' ॥ २७ परितुट्ठो णियगेहे गओ णिवो जाव पारणदिणम्मि । हक्कारिओ य सेट्ठी परिवेसइ चेत्तमड्डाए ॥ २८ परिवायगो वि सेट्ठी तजंतो अंगुलीए भुंजेइ । सेट्ठी वि तओ चितइ अच्चंतं दूमिओ चित्ते ॥ २९ 'धण्णो कयउण्णो सो मुणिसुव्वयसामिणो समीवम्मि । तइय च्चिय पव्वइओ जो सेट्ठी गंगदत्तो त्ति ॥ ३० जइ तइय च्चिय अहयं पि पव्वयंतो जिणिंदपयमूले । परतित्थियपरिवेसणमाईयविडंबणं एवं ॥ ३१ न लहंतो' इय चिंतापरस्स भोत्तूण सो णिवगिहाओ । नीसरइ हट्ठतुट्ठो परिवाओ विहियसम्माणो ॥ ३२ - 1A B भणिऊण जि । 20 D°घाइक। 30D वि। 40 D°त्तसत्तसंजु। 5A B णिवेऊणं। 60 D°ण एसो अ। 70 D°ए सययं । 8A B ओ सययं । 90 D°यवडि। 10 A Bईसाइवसगेण । 11 C D °सपरवसेणं । 12A B °यम्मित। 13 CD °स्स भए (य भोगवस्स भगवओ मह ।।
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