Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
View full book text
________________
सटीके मूलशुद्धिप्रकरणे द्वितीय स्थानकम् सेजंभवो त्ति सेज्जं भवोयही तारगो जओ जेणे । दसवेयालियमेयं मणगस्सट्ठाइ णिज्जढं ॥ ५ तस्सीसो जसमद्दो जसभद्दो गणहरो समुप्पण्णो । तत्तो च्चिय संभूओ संभूओ णाम वरसूरी ॥ ६ तत्तो य भद्दबाहु त्ति भद्दबाहू जुगप्पहाणगणी । तस्स वि य थूलभद्दो सुथूलभद्दो गणी जाओ ॥ ७ चउँदसपुव्वधराणं अपच्छिमो जो इमम्मि भरहम्मि । उस्सप्पिणीइमाए अणेगगुणगारवग्घविओ ॥ ८ जो मयरद्धयकरिकरडवियडकुंभयडपाडणपडिट्ठो । दढदाढविउडियमुहो खरणहरो केसरिकिसोरो ॥ ९ दो सीसा तस्स तओ जाया दसपुव्वधारया धीरा । जेठ्ठो अजमहागिरि अजसुहत्थी य अणुजेट्ठो ॥ १०
___ तओ तेसिं दुण्हं पि थूलभद्दसामिणा जुयंजुया गणा दिण्णा । तहा वि अइपीइवसेण एगओ चेव विहरति । अन्नया कयाइ अनिययविहारेण विहरमाणा कोसंबिणामणयरिं गया। तत्थ खुडुलयवसहिवसेण पिहप्पिहं ठिया । तत्थ य तया महंतं दुब्भिक्खं वट्टइ । ततो अजसुहत्थिसाहुणो पविट्ठा भिक्खाणिमित्तं महाधणवइधणसत्थवाहगेहं । तओ पविसंते* दट्टण साहुणो सहसा सपरियणो अब्भुढिओ धणसत्यवाहो। वंदिया य साहुणो। आइट्ठा य भारिया जहा 'आणेहि लहुं सीहकेसरमाइयं पहाणाहारं जेण पडिलाहेमि भयवंते' । तव्वयणाणंतरमेव समाणिओ पहाणाऽऽहारो तीए । तओ समुन्भिज्जमाणरोमंचकंचुएणं हरिसवसविसटुंतवयणकमलेणं पडिलाहिया मुणिणो, वंदिया य सपरियणेणं, अणुव्वइया य गिहदुवारं जाव । एयं च सव्वं दिटुं भिक्खट्ठा पविटेणं एगेणं दमगेणं । तं च दद्दूण चिंतियं तेण, अवि यधन्ना अहो ! कयत्था एए च्चिय एत्थ जीवलोगम्मि । एवंविहे वि एवं भत्तीए जे णमिजंति ॥ ११ नरलोयदुल्लहाणि य विविहपगाराणि भक्खभोज्जाणि । पज्जत्तीए अहियं लहंति दुब्भिक्खकाले वि ॥ १२ अहयं तु पुण अधन्नो कयसणगासप्पमाणमित्तं पि । न य उवलभामि कत्थ वि बहुविहलल्लिं कुणंतो वि ॥१३ जइ वि य कहंचि को वि हु अणिसं दीणाइँ जंपमाणस्स । वियरइ कयसणगासं तह वि हु अक्कोसए अहियं ॥१४ ता एए च्चिय मुणिणो आहाराओ जहिच्छलद्धाओ । मग्गामि किंचिमत्तं करुणाए दिति जइ कह वि ॥ १५
तओ एवं चिंतिऊण मग्गिया भत्तं तेण ते साहुणो । साहूहिं भणियं 'भद्द ! न एयस्स अम्हे सामिणो जाव गुरूहिं ण अणुण्णायं, ता गुरू चेव इत्थत्थे जाणंति' । तओ सो साहूणं पिट्ठओ गओ जाव दिट्ठा अजसुहत्थिसूरिणो, मग्गिया य । साहूहि वि कहियं जहा 'अम्हे वि मग्गिया आसि' । तओ गुरूहिं दिण्णसुयणाणोवओगेहिं 'पवयणाहारो भविस्सइ'त्ति णाऊण भणिओ ‘जइ पव्ययाहि तो देमो ते जहिच्छियमाहारं' । 'एवं होउ'त्ति तेण पडिवण्णे दिक्खिओ । अब्वत्तसामाइयं च दाऊण भुंजाविओ जहिच्छं । तओ सिणिद्धाहारभोयणाओ जाया विसूइया । परिक्खीणत्तणओ य आउस्स समुप्पन्नमहावयणासंघट्टो मरेऊण अव्वत्तसामाइयप्पभावओ उप्पण्णो अंधयकुणालकुमारस्स उत्तो । को सो कुणालो, कहं वा अंधओ जाओ? एयं साहेज्जइ
अत्थि इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे गोल्लविसए सयलरम्मयागुणगणणिहाणं चणयगामो णाम गामो । तत्थ रिजुवेय-जजुवेय-सामवेया-ऽथव्वणवेयजाणगो सिक्खा-वायरण-कप्प-च्छंद-निरुत्त-जोइसविऊ मीमावबोहगो णायवित्थरवियाणगो पुराणवक्खाणणिउणो धम्मसत्थवियारचउरो चणी णाम माहणो । सो य महासावगो । तस्स य घरे वसहीए ठिया सुयसागराहिहाणा सूरिणो
19 C D तेण। 2 0 D चोद्दसपु। 3 0 D या य क। 4 C D ते साहुणो दट्टण स। 50 D°हेहिँ एवं। 60D वि हु य कह वि को। 7A B दिण्णं सुयणाणोवओगपुब्वयं 'पव। 80D °साविबो ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248