Book Title: Mulshuddhiprakarana
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 120
________________ सम्प्रतिनृपाख्यानकम् अन्नया य तस्स माहणस्स भारिया सावित्ती णाम पसूया उग्गयाहिं दाढाहिं दारयं । तस्स य णिवत्तबारसाहस्स कयं णामं चाणको त्ति । पाडिय सूरीण पाएसु कहिओं दाढावुत्तंतो। तओ आयरिएहिं भणियं 'राया भविस्सइ' त्ति । माहणेण य घरंगएण चिंतियं 'हा कहूँ ! कहं मम वि पुत्तो होऊण अणेगाणत्थसत्थणिबंधणं महारंभाइपावट्ठाणकारणं रजं करेस्सई ?, ता तहा करेमि जहा न करेइ एस रज' ति । घट्ठाओ सिल्लगेण दाढाओ। तओ पुणो वि 'साहियं गुरूणं जहा 'घट्ठाओ मए दारयस्स दाढाओ' । गुरूहिं भणियं “दुडु विहियं, जओ जं जेण पावियव्वं सुहं व असुहं व जीवलोगम्मि । अण्णभवकम्मजणियं तं को हु पणासिउं तरइ ? ॥१६ जं जेण जह व जइया अन्नम्मि भवे उवज्जियं कम्मं । तं तेण तया(हा) तइया भोत्तव्यं णत्थि संदेहो॥१७ धारेजइ इंतो जलणिही वि कल्लोलभिण्णकुलसेलो। ण हु अण्णजमणिम्मियसुहा-ऽसुहो दिव्वपरिणामो॥१८ ता णिच्छएण होयव्वं एएण पडंतरिएण राइणा" । तओ कमेण जाओ उम्मुक्कबालभावो चाणको । पढियाणि य तेण वि' चउदस विज्जाठाणाणि । परिणाविओ य समाणकुल-सीलभारियं । उवरए य पियरम्मि 'सावगो' त्ति अप्पसंतुट्ठो गमेइ कालं । अन्नया कयाइ सा बंभणी गया भाइवीवाहे पेइयघरं । आगयाओ अण्णाओ" वि ईसरगेहपरिणीयाओ, तासिं च ताणि माया-पीइपमुहाणि माणुसाणि कुणंति गोरवं । अवि य धोवेइ को वि पाए, सुगंधतिल्लेहिँ को वि मक्खेइ । नाणाविहेहिँ उव्वट्टणेहि उबट्टए को वि ॥१९ व्हावेइ को वि, को वि हु वत्था-ऽलंकारमाइ अप्पेइ । को वि विलेवणमाणइ, किं बहुणा इत्थ भणिएणं? ॥२० भोयण-सयणाईसु वि गोरवई परियणो पयत्तेण । विविहोल्लावकहाहिं आयरतरएण उल्लवइ ॥२१ तं च चाणकमजं 'अत्थहीण' त्ति काउं वयणमित्तेण वि ण को" वि गोरवेइ, कम्मं च कारेजइ । एगागिणी चेव एगदेसे चिट्ठइ । वत्ते य वीवाहे विसज्जणकाले इयराण विसिट्ठवत्थी-ऽलंकारा-ऽऽभरणेहिं महंतो उवयारो कओ, तीसे पुण इयरवत्थाइएहिं अप्पो चेव । तओ सा 'घिसि घिसि दारेदभावस्स जत्थ माया-वित्ताणि वि एवं परिभवं कुणंति'त्ति अट्टदुहट्टवसट्टा महाचिंतासोगसागरगया पत्ता पइगेहं । दिट्ठा चाणक्केण 'हा ! किमेयं" ? जमेसा पीइहरोओ वि समागया सखेया उवलक्खेजइ !' त्ति चिंतेऊण समाउच्छिया खेयकारणं । ण य किंचि जंपेइ । तओ णिब्बंधेण पुच्छियाए जंपियं जहा “अहं 'तुज्झ दरिदस्स करे विलग्गत्ति काऊण मीया-वित्तेहिं वि अवमाणियो, 'अवमाणिय' त्ति काऊणाधीई जाया" । तओ चिंतियं चाणक्केण 'सत्यमेतत् , यतोऽर्थ एव गौरव्यः, न गुणाः । उक्तं च जातिर्यातु रसातलं गुणगणस्तस्याऽप्यधो गच्छतु, शीलं शैलतटात् पतत्वभिजनः सन्दह्यतां वह्निना । सौ(शौ)र्ये वैरिणि वज्रमाशु निपतत्वर्थोऽस्तु नः केवलं, येनैकेन विना गुणास्तृणलवप्रायाः समस्ता इमे ॥ १५४ ॥ तथा धनैर्दुःकुलीनाः कुलीनाः क्रियन्ते, धनैरेव पापाजना निस्तरन्ति । धनेभ्यो विशिष्टो न लोकेऽस्ति कश्चिद्, धनान्यर्जयध्वं धनान्यर्जयध्वम् ॥१५५ ।। 10 D पाडिओ य सू। 20D °ओ य दा। 3 A B °इ ति, ता। 4 A B पसाहियं गुरूण 'घट्टा । 5A B °या होयवं। 60D °म्मनियकम्मनिम्मिओ देवपरि। 70 D वि चोइस । 8A B °लभारियं । 90 D °या यक। 10 A B °ओ ईसर। 110 D °मुहमाणुसा वि कु। 12 C D कोइ। 13 0 D जणाकाले। 14 C D स्था-ऽऽभरणा-ऽलंकाराइएहिं महं। 15 A B सा चिंतेइ 'धिसि। 16 CD °सट्टमहा। 17A B °य? ति ज। 18 C D °ओ समागया वि। 19 0 D°ण पुच्छिया। 200D माया-वित्तेण वि। 21 A B °या इति काऊण । मू० शु० १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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