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संयमसूत्र
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली ।
अप्पा कामदुहा घेणू, अप्पा मे नंदणं वणं ॥१॥
आत्मा ही वैतरणी नदी है । आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है । आत्मा ही कामदुहा धेनु है और आत्मा ही नन्दनवन है ।
अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य ।
अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पट्ठिय सुप्पट्ठिओ ॥२॥
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आत्मा ही सुख - दुःख का कर्ता और विकर्ता (भोक्ता) है । सत्प्रवृत्ति में स्थित आत्मा ही अपना मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में स्थित आत्मा ही अपना शत्रु है ।
जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे ।
एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ॥३॥
जो दुर्जेय संग्राम में हजारों-हजार योद्धाओं को जीतता है, उसकी अपेक्षा जो एक अपने को जीतता है, उसकी विजय परमविजय है ।
एगओ विरई कुज्जा, एगओ य पवत्तणं ।
असंजमे नियतिं च, संजमे य पवत्तणं ॥४॥
एक ओर से निवृत्ति और दूसरी ओर से प्रवृत्ति करनी चाहिए— असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति ।
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